हंसी-ठिठोली आंख-मिचौनी, बचपन के दिन वो चार। स्मृति पटल पर आता जब भी बचपन, हो जाता नव ओज का संचार। खेल-खिलौने गुड्डे-गुड़िया, मिलता निश्छल सबका दुलार। आना-कानी अथक मनमानी, मां की डपट में छिपा रहता प्यार। साथी-संगी का सांझा झोल झपाटा, गुंंथा रहता स्नेह का अटूट धागा। निश्छल तरंग नित […]