एक पक्ष भाव से,लिखा नहीं सु ग्रंथ को, धर्म-कर्म से अभी,रखा नया सुपंथ को। सस्य श्यामला बने,धरा प्रकीर्ति गुंज से, पाप ताप है मिटे विराट अग्निकुञ्ज से॥ देश काल मान का,समृद्ध सार अंक है, हार-जीत जो हुआ,समस्त तार अंक है। नित्य गंध व्याप्त हो,सनेह पुष्प कुंज से, शुद्धता बने रखे,विराट […]
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(रस-श्रृंगार रस (वियोग श्रृंगार),वियोग श्रृंगार का पहला प्रकार-पूर्वराग,आलंबना -कृष्ण,उद्दीपन-एकांत,ऋतु,अनुभाव- निष्प्राण और संचारी भाव-जड़ता है) विरह हृदय पर नयन पसारो॥ श्यामल अंबर वृंदावन है,आओ कुंज विहारो। कंचन तन अरु मन मधुवन है,आकर मोहिं निहारो, सकल जगत निष्प्राण हुआ ज्यों,उर जड़ता को हारो। राधा हूँ, पिय अंतर्मन की, इव दुख बोझ उतारो। […]