मेरे विकलांग होने से
घर और दादी कभी अकेले नहीं होते
मेरे विकलांग होने से
मां समझ गई है फर्क
सपने और हकीकत का
मेरे विकलांग होने से
पिता के
दांये हाथ की जिम्मेदारियां
और बढ़ गई हैं
मेरे विकलांग होने से
भाई ने पाया है
एक अनोखा आत्मविश्वास
अकेले ही जूझना
जिन्दगी की मुश्किलों से
मेरे विकलांग होने से
कुछ लोग
वक्त की तेज रफ्तार से थककर
मेरे पास सुस्ताने आ बैठते हैं
जिन्हें जमाने ने
मेरी मित्रता का तमगा पहना दिया गया है
जबकि मेरे विकलांग होने पर भी
नहीं हो पाता हूं
मैं विकलांग
मैं उड़ता हूं पंछियों के साथ
बहता हूं नदी और हवा में
भटकता हूं अपने आकाश में बादल बनकर
मैं अंधेरे का दीपक हूं
और दीपक तले अंधेरा भी
अगर तुम सोचते हो
कि फिर भी विकलांग हूं मैं
तो तुम्हारी सोच को जरूरत है
मेरी व्हीलचेयर की…
नाम-प्रदीप सिंह
साहित्यिक उपनाम- नही है
वर्तमान पता- हिसार(हरियाणा)
राज्य- हरियाणा
शहर- हिसार
शिक्षा- दैहिक सीमाओँ के चलते स्कूली शिक्षा नही ले सका
कार्यक्षेत्र- सहित्य
विधा – काव्य
प्रकाशन- 2015 में कविता संग्रह ‘थकान से आगे’ बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
सम्मान- DPF-3(दिल्ली पोएट्री फेस्टिवल-3) में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा युवा श्रेणी में सम्मानित
ब्लॉग- नहीं है
अन्य उपलब्धियाँ- कुछ कविताएं उर्दू में अनुवादित एवं प्रकाशित
लेखन का उद्देश्य- समाज में एक नई सोच का प्रारंभ हो सके