हक़ वफा का हम जो जताने लगे,
वो फिर बातों से हमें बहलाने लगे।
हमने समझा सनम तुम को नादां,
तुम हमको हमीं से चुराने लगे।
बिताए न बीते तुम बिन एक पल,
वो घड़ियाँ मिलन की गिनाने लगे।
सनम ये जां भी है तुम पे निसार,
वो शहीदों में हमको गिनाने लगे।
दिल की दस्तक पे हरदम मौजूद से,
दिल ही दिल में हमें वो चाहने लगे।
तसव्वुर में मेरे अक्सर आ करके,
ग़ज़ल मोहब्बत की वो गुनगुनाने लगे।
होंठों पर कहकशां ख़िलने लगी,
जबसे वो मंद-मंद मुस्कुराने लगे।
नाम से उनके धड़कता है दिल-ए-सुधा,
पर वो हमसे मिलने से नज़रें चुराने लगे।
परिचय : विनय पान्डेय मध्यप्रदेश के कटनी में रहते हैं। आपका व्यवसाय पान्डेय ग्रुप आफ कम्पनीज प्राईवेट लि. है। एमबीए की शिक्षा पा चुके श्री पाण्डेय की विशेष रूचि मुक्तक,छंद, ग़ज़ल और हास्य कविता लिखने में है। उपलब्धियों की बात करें तो,कवि सम्मेलन और मुशायरा समूह का सफलतापूर्वक संचालन करते हैं। कई पत्रिका एवं समाचार-पत्र में कविताएँ प्रकाशित होती हैं।