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विरह हृदय पर नयन पसारो॥
श्यामल अंबर वृंदावन है,आओ कुंज विहारो।
कंचन तन अरु मन मधुवन है,आकर मोहिं निहारो।
सकल जगत निष्प्राण हुआ ज्यों,उर जड़ता को हारो।
राधा हूँ,पिय अंतर्मन की,इव दुख बोझ उतारो।
मधुर मिलन को मैं हूँ प्यासी,अब तो आप पधारो॥
#श्रीमन्नारायणाचार्य ‘विराट’
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