नहीं जैसे सितमगर सोचता है,
कभी भी कुछ न पत्थर सोचता है।
तुम्हें तकलीफ तो होती ही होगी,
मेरा एहसास बढ़कर सोचता है।
ज़रा-सी फिक्र तो करनी पड़ेगी,
थका-हारा भी मुड़कर सोचता है।
तो फिर अंजाम भी होता है अच्छा, अगर आगाज बेहतर सोचता है।
हमें फिर मशवरा लेना पड़ेगा,
जो हमसे खूब सुंदर सोचता है।
बढ़ा लेता है अपना जब क़दम वो,
मुसाफ़िर फिर न चलकर सोचता है।
कभी दुनिया न वैसी बन सकेगी,
वो जैसा एक शायर सोचता है॥
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#डॉ.जियाउर रहमान जाफरीपरिचय : डॉ.जियाउर रहमान जाफरी की शिक्षा एम.ए. (हिन्दी),बी.एड. सहित पीएचडी(हिन्दी) हैl आप शायर और आलोचक हैं तथा हिन्दी,उर्दू और मैथिली भाषा के कई पत्र- पत्रिकाओं में नियमित लेखन जारी हैl प्रकाशित कृति-खुले दरीचे की खुशबू(हिन्दी ग़ज़ल),खुशबू छूकर आई है
और चाँद हमारी मुट्ठी में है(बाल कविता) आदि हैंl आपदा विभाग और राजभाषा विभाग बिहार से आप पुरुस्कृत हो चुके हैंl आपका निवास बिहार राज्य के नालंदा जिला स्थित बेगूसराय में हैl सम्प्रति की बात करें तो आप बिहार सरकार में अध्यापन कार्य करते हैंl