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हार गए पर सोचते,हम जाएंगे जीत।
दुश्मन को पचती नहीं,भगवा की ये रीत॥
बैठे-बैठे सोचते,चला नहीं कुछ खेल।
चारों खाने चित्त हुए,चारों पप्पू फेल॥
मुँह ही की सब खा रहे,चलती फिर भी चोंच।
सारे जग को हार रहे,नहीं बदलती सोच॥
सब विरोधी उखाड़ते,गड़ी हुई जो ईंट।
साँप तो अब निकल गया,रहे लकीरें पीट॥
#अवनेश चौहान ‘कबीर’
परिचय: अवनेश चौहान ‘कबीर’ की जन्मतिथि-१ जुलाई १९८५ और जन्म स्थान-चन्दौसी है। आप उत्तर प्रदेश राज्य के शहर-चन्दौसी(जिला-संभल) निवासरत हैं। स्नातक तक शिक्षित श्री चौहान का कार्यक्षेत्र-वित्त है। आप अधिकतर दोहे रचते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि है।
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