हे ईश्वर ये किस जगह पर हूँ मैं,
मैं स्वयं को ही खोज नहीं पाता…
मद्धिम-मद्धिम है ये सांसें अब तो,
स्वयं मैं कुछ भी सोच नहीं पाताl
उसकी स्मृति में ही अब हर क्षण है,
पृष्ठों में मात्र वो ही नजर आता…
लिखना तो एक ढेर चाहता हूँ,
परन्तु लिख मैं कुछ भी नहीं पाताl
ताने हर व्यक्ति देता मुझे अब तो,
बिन कारण वो सब सुनना पड़ता…
विश्वास नहीं कि कुछ कर पाऊँगा,
मेरा ही प्रतिबिम्ब मुझे ही डराताl
उखड़ा-उखड़ा-सा समय रहा है,
सम्पूर्ण परिश्रम अब है प्रतिहार…
कंकड़-पत्थर बिखरे पथ पर अब तो,
नीरस हुआ लगता पथ बेकारl
शेष नहीं कुछ भी भंडारित ध्यान,
कुंडलिनी भी अब सुप्त हुई देखो…
भ्रमित होने लगा हूँ फिर अब मैं,
जितनी समस्याएं टांड पर फेंकोl
कठिन है इनसे दो हाथ करना,
समस्या भी अब है द्वार पर खड़ी…
भय नहीं समाधान की डांट का,
अंदर आने की जिद पर है अड़ीl
अब भी एक दम्भ-सा है कहीं तो,
अंधकार है और है अब अज्ञान…
थका-थका-सा अब है ये जीवन,
दिखा दो सवेरा हे प्रभु महानll
#हिमांशु मित्रा’रवि’
परिचय: हिमांशु मित्रा उत्तरप्रदेश राज्य के शिवपुरी (लखीमपुर खीरी) में रहते हैंl आपकी उम्र २० वर्ष तथा स्नातक उत्तीर्ण हैंl आप हिन्दी में लिखने का शौक रखते हैंl