कविता – माँ अहिल्याबाई

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संस्कारों का पहन के जामा,
दया, धर्म की थी दीवानी।
कर्म योगिनी, राजयोगिनी,
अहिल्याबाई बनी कल्याणी।

शासन का परचम फहराकर,
धर्म ध्वजा को लहराकर।
हरा दिया मुगलों को उसने,
ऐसी थी अहिल्या महारानी।

बहुत रूप होते नारी के,
सभी रूपों में जीती है।
अमर हो गई वो इतिहास में,
शासक रूप में तूफ़ानी।

कभी बनी अहिल्या महारानी,
कभी लोकमाता बनी।
हिन्दी देश की नारी है तू,
अद्भुत तेरी कहानी।

सोमनाथ से काशी तक,
कर जीर्णोद्धार मंदिरों का।
ऐसी कर्मनिष्ठ, करुणामयी,
ऊर्जा स्रोत हार कभी न मानी।

देख प्रजा की पीर, पोंछ चक्षुओं से,
अपने नीर, स्वयं उठ आती।
निज शोक भूलकर वीरता भरी,
वो सबकी ज़ुबानी।

वैधव्य को अपने स्वीकार,
संकल्प लिया सती होने का।
मल्हार राव का मानकर आदेश,
त्याग दिया जो मन में ठानी।

शिव को अपने आराध्य मानकर,
अपना वैभव सहर्ष त्यागकर।
बुद्धि से पेशवा को हराया,
ऐसी थी महा ज्ञानी।

आस बनी विश्वास बनी,
पुत्र मोह को त्याग कर।
मृत्यु दण्ड का फ़रमान दिया,
जब की उसने मनमानी।

मधु टाक

इन्दौर

परिचय-

नाम: मधु टाक
शिक्षा: बी.एससी, स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र(Economics), स्नातकोत्तर समाज शास्त्र (Sociology)
प्रकाशन: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक भास्कर, पत्रिका, में रचनाएँ प्रकाशित।
संप्रति: विभिन्न काव्य संस्थाओं में लेखन, वाचन, संचालन।
विभिन्न साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित,
आकाशवाणी में प्रसारण गीत, ग़ज़ल, कविता।

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