धर्म मार्ग से प्राप्त अर्द्ध अंग की साहित्यिक प्रतिष्ठा है ‘पत्नी-एक रिश्ता’

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पुस्तक समीक्षा

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत

पुस्तक- पत्नी-एक रिश्ता
लेखक- राधेश्याम माहेश्वरी
मूल्य- 400/- मात्र
प्रकाशक- ओस पब्लिकेशन, इन्दौर

पुस्तक के होने का अर्थ किसी अक्षर या शब्द की प्रतिष्ठा ही है, यानी कि कोई अक्षर, कोई शब्द जब पुस्तक में उतरता है तो उसका प्रतिष्ठापन होने लगता है, और युगों-युगों तक पाठक मन से उस शब्द, उस आखर की पूजा होने लगती है। जैसे ज़मीन या पहाड़ पर हज़ारों-लाखों पत्थर हैं किंतु उन पत्थरों में से कोई बिरले ही पत्थर होते हैं, जिन्हें मूर्तिकार तराश देता है और किसी मन्दिर के देवता के रूप में लाखों-लाख बरस उस पत्थर की पूजा होने लगती है। वैसे ही करोड़ों जन में से बिरले ही व्यक्ति होते हैं जो लेखन करते हैं और उन लाखों लेखन करने वालों में हज़ारों ही पुस्तक प्रकाशन की यात्रा तय कर पाते हैं और उन हज़ारों में से भी एकाध ही राधेश्याम माहेश्वरी होते हैं, जो धर्म मार्ग से प्राप्त मनुष्य की अर्धांगिनी यानी पत्नी पर अपनी लेखनी को मोड़कर जीवन के मधुर-स्नेहिल अथवा भोगे हुए यथार्थ को पुस्तक रूप में लाकर साहित्यिक दृष्टिकोण से प्रतिष्ठित कर पाते हैं।
पुस्तक में अधिकांशतः गीतों का गुंजन प्रतिबिंबित होता है, जो कि सायास ही प्रेम का आवश्यक हस्तक्षेप है।
सुखद दाम्पत्य के चरणबद्ध आंदोलनों को लेखक ने संस्मरणों के माध्यम से बख़ूबी पाठक तक पहुँचाया है, जो प्रेरक और उपयोगी है।
पुस्तक में लेखक ने अपनी पत्नी के साथ हुए हर सहज व्यवहार और कठिन दौर को भी बेहद निष्पक्षता के साथ लिखा है, यह उसी तरह का कार्य है जैसे महात्मा गाँधी ने अपनी पुस्तक ‘सत्य के अनुप्रयोग’ में ईमानदारी और निष्पक्षता से लिखा।
लोग हर बात छुपाते हैं पर लेखक ने साफ़गोई से अपने दाम्पत्य के हर तथ्य को ईमानदारी से लिखा है और लोक की चिंता न करते हुए लिखा। जिससे लेखक का स्पष्ट वक्ता होना परिभाषित होता है। जैसे पति-पत्नी के बीच के झगड़े, मनमुटाव और यहाँ तक कि हादसों की जद भी साफ़-साफ़ लिखकर एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
सुखद दाम्पत्य की आधी शताब्दी बीत जाने के बाद इतना ख़ूबसूरत उपहार प्रायः देखने को नहीं मिलता।
एक तरफ़ समाज में ऐसी साफ़गोई को छवि से जोड़कर देखा जाता है, उसी दौर में इतना खुलकर लिखना ही लेखक की लेखकीय ईमानदारी है।
पत्नी के साथ उनके किए प्रेमिल मनोगत, प्रियतम छंद भी उल्लेखित किए हैं, जिससे साफ़ दिखाई देता है कि इस तरह का जीवनसाथी नेकदिल है। पाठकों तक भावनात्मक दृश्य उपस्थित कर लेखक ने पुस्तक को रोचक बनाने का पूरा प्रयास किया है। कविताओं और गीतों के माध्यम से मनहर रिश्ता कायम किया है।
वो गाँव जहाँ पत्नी का ससुराल है, उस गाँव की परिधि को उल्लेखित कर समायानुशासन को लेखक ने चित्रित किया है।
यहाँ लेखक ने अपनी पत्नी को प्रेयसी भी माना है, जो कम ही दृष्टिगोचर होता है। दुनिया के तमाम गृहयुद्धों का इतिहास इस बात का साक्षी है कि वहाँ आपसी प्रेम समाप्त होता है, संवेदना समाप्त होती है, तब जाकर युद्ध के हालात बनते हैं, पर इसके उलट परिवार में क्लेश इस बात पर होता है कि आत्मसम्मान सबसे पहले खंडित होता है। और इसी बात को लेखक ने अपने शब्दों में स्वीकार करने के भाव से लिखा, जिसे पश्चाताप भी माना जा सकता है। लेखक ने पत्नी पर अपनी आक्रामकता की स्वीकृति भी दी तो वहीं माफ़ी माँग कर ग्लानि भाव को भी दर्शाया है।
एक पारंपरिक व्यवसाय करने वाले परिवार का सुंदर चित्र, उसमें पत्नी से प्रेम भी बख़ूबी दर्शाते हुए राधेश्याम जी एक मनोरम परिवार परम्परा की प्रेरणा भी पाठकों को देते हैं।
लेखक की बेटी और उनके पिता का दुर्घटना में निधन हुआ और उसके बाद की टूटन को ईश्वर का दण्ड मानने वाले लेखक आस्तिकता की ओर इशारा करते हैं।
लेखक ने अपनी नाकामयाबी को छुपा कर पर्दा डालने वाली कला से किनारा करते हुए उम्र के उत्तरार्ध में पश्चाताप की दावाग्नि को चुनना बेहतर समझा।
रामावतार त्यागी के शब्दों में कहूँ तो ‘जी रहे हो किस कला का नाम लेकर/ कुछ पता भी है कि वह कैसे बची है!
सभ्यता की जिस अटारी पर खड़े हो/ वह हमीं बदनाम लोगों ने रची है।’
यह बात राधेश्याम जी पर बख़ूबी सटीक बैठती है जो लेखकीय निष्ठा के साथ परिवार के प्रति नितांत ज़िम्मेदार रहे।
पुस्तक सैंकड़ों ख़ूबियों से भरी हुई प्रेरक और प्रबोधनीय है, जिसे हर दम्पत्ति को पढ़ना चाहिए। बढ़िया छपाई के साथ पुस्तक की क़ीमत तो अधिक है, जितनी राशि में एक आम दम्पत्ति के घर में आधे माह तक दूध आ सकता है, इसलिए महँगी पुस्तक पाठकों की जेब पर भारी होती है और पाठक उसे ख़रीदने की तरफ़ आकर्षित नहीं होता। वैसे उस राशि में पुस्तक ज्ञान और अनुभवों का खज़ाना है।

#डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

इन्दौर, मध्यप्रदेश

(समीक्षक मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ-साथ हिन्दी के आंदोलनकर्ता भी हैं)

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मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।