“उड़ान हमारे क़लम की” संकलन की संपादिका साधना ठाकुर हैं।इस संकलन में लेखक,लेखिका, कवि, कवयित्री द्वारा लिखे साहित्यिक लेख दस ,कविताएँ एक सौ तीस ,कहानियाँ लगभग सात है। यह पुस्तक युवा को कई प्रकार के प्रेरक और समाज का मार्गदर्शन करने में सकारात्मक संदेश देती है।
इस पुस्तक में रचनाकारों ने
कुल 130 कविताओं को स्थान दिया है।
“उड़ान हमारे क़लम की” पुस्तक के प्रकाशन के लिए मुझे अत्यन्त आनन्द हुआ कि इस संकलन में
भारतीय वसुंधरा को अपने वीरोचित भाव से गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की गौरवगाथा याद करते हुए कविता “सच्ची सेनानी” शीर्षक से कवयित्री रेखा देवी ने लिखी है। स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची वे सेनानी थी, चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी। बूढ़े भारत में आयी नयी जवानी थी, इस प्रकार उन्होंने अद्भुत वर्णन किया है।
“दहेज” कविता में कवयित्री फ़रजाना ने दहेज की प्रथा क्यों दुनिया में ? सारी ज़िंदगी गुज़ार देती हैं बेटियाँ अपने परिवार की ख़ुशियों में अपनी ज़िंदगी गुज़ार देती हैं बेटियाँ। फिर दहेज की प्रथा क्यों दुनिया में कह कर
बहुत सुंदर वर्णन किया है।
कवि ओम प्रकाश गुप्ता ने भारतीयों का मुख्य पर्व होली पर कहा है कि श्री कृष्ण कन्हाई होली खेलूँ रे, मेरे कृष्ण कन्हाई के संग होली खेलूँ रे। कवि ने पुराणों के अनुसार रंग वाली होली खेलने का संबंध भगवान श्री कृष्ण ब्रज की किशोरी राधा वृन्दावन की कुंज गलिन में होली धूम मची है कहकर अति सुंदर विश्लेषण व्यक्त किया है ।
“भारत का किसान” कविता में कवि डॉ. मयुरेश शर्मा कहते हैं कि भारतीय किसान की हालत बहुत ही गंभीर है। किसान षड्यंत्र में फंसा है। उन्होंने कहा है कि धरती चीरकर फसल बोया, भूखा पेट परिवार सोया, इतना मेहनत करते हुए भी वह अपने बच्चों को खाना शिक्षा भी नहीं दे पा रहा है।
बचपन को याद करते हुए कवयित्री कल्पना दोन्दलकर ने “मेरा प्यारा बचपन” कविता में कहती हैं, हे मेरा प्यारे बचपन, मासूम, निर्मल, स्वछंद बचपन। फिर से लौट आ मेरे तन, मन, मेरे नयन, मेरे आँगन। न कुछ खोने का डर न पाने की चिंता, बचपन की मीठी बातें याद बन जाती हैं। कवयित्री ने आलोचनात्मक विषय का वर्णन किया है।
हमारे सभी साहित्यिकार मित्रों को हार्दिक रूप से अभिनन्दन करता हूं कि उनका परिश्रम सफल हो। पुस्तक के प्रकाशन और मुद्रक के प्रति मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।
इस पुस्तक में लगभग 130 महत्त्वपूर्ण एवं नए-नए विषयों पर सरल रूप से कविताएँ, लेख, कहानियाँ दिये हैं ताकि पाठक वर्ग और विद्यार्थी वर्ग लाभान्वित हो सकें।
इस पुस्तक में भाग लेने वाले हमारे सभी साहित्यकार ने अपनी–अपनी कविताएँ लिखी हैं। सुलभा संजय सिंह राजपुत ने नारी की गौरवगाथा, शिव कुमार गुप्ता जी ने हिंदी की वीरांगना है, डॉ. आशुतोष जी ने बिटिया रानी, सुनीता प्रयाकर राव ने शिवजी मेरी जान हैं, श्रीमती अमला देवी ने मेरा नाम है भारत, शिल्पा साहा जी ने आम के आम विकास का काम कहानी बहुत मज़ेदार है।
लेख में लेखक राठौड़ श्रावण ने सोला कोटि बंजारा समाज का आध्यात्मिक धर्म गुरु संत सेवालाल महाराज की पहचान दुनिया के कोने–कोने तक पहुंचाने का प्रयत्न किया है।
कविताएँ कौन हूँ मैं, झाडू, सपने, पत्थर की चाह, ओ इंसान, कितने दूर कितने पास, लोभ लालच की बहती, ढाक फुल, आज़ादी, देवलोक की यात्रा
आदि कविताओं में कवियों ने बहुत सुंदर रूप से अपनी बात को वर्णित किया है।
यह पुस्तक आज की युवा पीढ़ी के लिए बहुत ही उपयोगी है। मैं आशा करता हूँ इस संकलन द्वारा हम अपनी आवाज़ को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने में सक्षम होंगे। ये रचनाएँ पूरे भारत को, विदेश में रहने वाले पाठकों को अपनी बुलंद आवाज़ से प्रभावित करेंगी और अपना प्रचार और प्रसार पाएँगी।
गीता प्रकाशन रामकोट चौरस्ता, हैदराबाद –500001 से प्रकाशित यह पुस्तक
मोबाइल : 9849250784
पर संपर्क कर प्राप्त की जा सकती है।
पुस्तक का मूल्य: ₹169/- है।
प्रकाशन वर्ष: 2023
पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या: 152 है।
पुस्तक का आई एस बी एन:
978-93-91934-61-3 है। पुस्तक बहुत ही उत्तम काग़ज़ पर तैयार की गई है। पुस्तक का पहला पन्ना मुख्य पृष्ठ क़लम, पेन्सिल, पुस्तक से भरा हुआ है, जिनको जानना जिज्ञासु पाठक के लिए महत्त्वपूर्ण है। पुस्तक जानकारी पूर्ण और अपने रोचक रोमांचक क्रय के कारण पठनीय है।
समीक्षक: लेखक राठोड़ श्रावण
हिंदी प्रध्यापक, शासकीय महाविद्यालय इंद्रवेल्लि आदिलाबाद तेलंगाना
(Book Review By Rathod Sravan writer)