नहुष के चरित्र-सी लुटियन दिल्ली

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भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानन्दन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा से आयु और आयु से नहुष पैदा हुए। यानी नहुष प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुरवा का पौत्र था।
पृथ्वी लोक पर धर्म की ध्वजा फहराने वाले सुचरित्र, धर्म रक्षक राजा नहुष का कार्य राज चल रहा था।
धार्मिक रूप से सच्चा और चरित्रवान राजा नहुष की एक दिन किस्मत चमक गई। यानी उनके भाग्य में अपने धर्माधिकारी होने का प्रतिफल मिला।
वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा और वे इस महादोष के कारण स्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान में जा छुपे। इन्द्रासन ख़ाली न रहने पाये, इसलिये देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के धर्मात्मा राजा नहुष को इन्द्र के पद पर आसीन कर दिया। नहुष अब समस्त देवता, ऋषि और गन्धर्वों से शक्ति प्राप्त कर स्वर्ग का भोग करने लगे।
समय का पहिया और भोग में रमने की आसक्ति ने नहुष को भी नहीं छोड़ा, नहुष भी अब स्वर्ग के सुखो में रमने लग गए।
सुख के साथ नहुष का धर्म प्रवाह भी कमज़ोर होता चला गया और
अकस्मात् एक दिन उनकी दृष्टि इन्द्र की साध्वी पत्नी शची पर पड़ी। शची को देखते ही वे कामान्ध हो उठे और उसे प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयत्न करने लगे।
शची को आभास हो गया नहुष की नीयत का। शची घबरा गई, भयभीत हो उठी, क्योंकि शची का चरित्र दाव पर आ सकता था, उसका सतीत्व खतरे में था।
जब शची को नहुष की बुरी नीयत का आभास हुआ तो वह भयभीत होकर देवताओं के गुरु बृहस्पति की शरण में जा पहुँची और नहुष की कामेच्छा के विषय में बताते हुए कहा, “हे गुरुदेव! अब आप ही मेरे सतीत्व की रक्षा करें।” गुरु बृहस्पति ने सान्त्वना दी, “हे इन्द्राणी! तुम चिन्ता न करो। यहाँ मेरे पास रह कर तुम सभी प्रकार से सुरक्षित हो।”
गुरुदेव से आश्वस्त हो कर शची गुरुदेव के पास रहने लगी और बृहस्पति इन्द्र की खोज करवाने लगे। अन्त में अग्निदेव ने एक कमल की नाल में सूक्ष्म रूप धारण करके छुपे हुए इन्द्र को खोज निकाला और उन्हें देवगुरु बृहस्पति के पास ले आये। इन्द्र पर लगे ब्रह्महत्या के दोष के निवारणार्थ देव-गुरु बृहस्पति ने उनसे अश्वमेघ यज्ञ करवाया। इन्द्र ब्रह्महत्या के दोष से तो मुक्त हुए और फिर इन्द्रासन भी हासिल किया।
उक्त वृतांत में जिस तरह से नहुष का चरित्र पतन के मार्ग पर पहुँचा, यह विचारणीय प्रश्न भी है, और वर्तमान के हस्तिनापुर यानी दिल्ली की कहानी भी।
भारतीय पौराणिक कहानियों और किस्सागोई में कई मुद्दों का समाधान और कई का भूत, भविष्य और वर्तमान छुपा होता है, इसे नकारा भी नहीं जा सकता।
सच ही तो है कि जब संसार के सबसे बड़े धार्मिक व्यक्ति का भी सुख-सुविधाओं, भोग की अति के कारण मन का बदलना और स्थिर न रह पाना सम्भव हो सकता है, तो फिर आज के संत-साधु, संन्यासी, बाबा, नेता, साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षक, आदि कैसे सुरक्षित रह सकते है!
वर्तमान में लुटियन दिल्ली भी चारित्रिक दोषों के बोझ से दब रही है।

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों पर अगर नज़र डालें तो दिल्ली में रोज़ कम से कम 5 लड़कियों से बलात्कार होता है। हैरानी की बात यह है कि बलात्कार की 96 फ़ीसदी घटनाओं में जानकार ही गुनहगार होते हैं। यही वजह है कि बलात्कारियों में सबसे ज़्यादा तादाद ‘फ़ैमिली फ़्रेंड्स’ की है।
आखिर किन रिश्तों की मर्यादाएँ शेष हैं? या फिर किस पर विश्वास किया जाए?
कहने को ये बड़ी साफ़गोई से कह सकते हैं कि 2016 के मुकाबले 2019 में रेप, शील भंग और छेड़छाड़ यानी महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले जुर्म के मामलों में कमी आई है। लेकिन सच्चाई तो ये है कि पिछले दो सालों में बलात्कार के लगभग 25 मामले ही कम हुए हैं।
लेकिन बलात्कार के मामलों का चलन दिल्ली में वही पहले की तरह ही ख़तरनाक है। ख़तरनाक यानी दिल्ली में जितनी लड़कियों या महिलाओं के साथ भी बलात्कार की वारदात होती है, उनमें से 96 फ़ीसदी मामलों में बलात्कारी लड़कियों के जानने वाले या परिचित लोग ही होते हैं, जबकि सिर्फ़ 4 फ़ीसदी लड़कियाँ अजनबियों का शिकार बनती हैं।

आखिर ये चरित्र तो दिल्ली का नहीं था कभी। किसी समय में दिल्ली के समीप हस्तिनापुर भरत के सम्पूर्ण शासन की राजधानी हुआ करती थी, यानी शुद्ध धार्मिक, चरित्रवान, और सच्ची राजधानी थी, उसके बाद जब मुगलिया सल्तनत आई तब भी यह उनकी सल्तनत का अहम हिस्सा यानी राजधानी ही रहा।
राजधानी मतलब सभी दोषों से अमूमन मुक्त ही मानी जाती थी।
समय के साथ दिल्ली बदलती गई, दिल्ली अट्टालिकाओं की विशालता से नापी जाने लगी, हवा में दौड़ती गाड़ियाँ, बदलता परिवेश, फ्लाईओवर और मेट्रो की सफ़लता कहने वाला शहर भी धीरे-धीरे बदलाव के रास्ते पर जाने लगा। सभ्यता ने जैसे करवट लेना शुरू ही किया कि ऐसे में दामिनी की जीवनलीला समाप्त हो जाने वाली हृदय विदारक घटना ने दिल्ली सहित सम्पूर्ण राष्ट्र को झकझोर दिया। मामला अभी थमा ही नहीं कि दिल्ली में उछाल मारते बलात्कार के आंकड़ों ने एक बार फिर वहाँ के चारित्रिक इतिहास की कमर तोड़ दी।
बीते दिनों दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मलिवाल जयहिंद ने भी यही बात कही थी कि दिल्ली दिन प्रतिदिन असुरक्षित होती जा रही है। उन्होंने इसके लिए जागरूकता केम्पेन भी चलाया था, किन्तु फिर भी दिल्ली अभी भी जागरुकता से दूर है।
आखिर कब तक दिल्ली इसी तरह दहलती रहेगी? क्यों मानवता का पाठ पढ़ाने वाली दिल्ली आज महिलाओं के लिए इतनी असुरक्षित-सी है?
सवाल कई हैं, जवाब में पूरा तंत्र चुप्पी साध कर अपना बचाव करता नज़र आ रहा है।
इसी तरह यदि चलता रहा और प्रशासन, सामाजिक संस्थाएँ, विद्यालय, महाविद्यालय आदि दिल्ली को बचाने में नाकामयाब रहे तो एक दिन दिल्ली विश्व के सबसे असुरक्षित शहरों में शामिल हो जाएगी, जहाँ महिलाओं का सड़क पर निकलना भी दूभर हो जाएगा।
समय रहते दिल्ली को इस चारित्रिक पतन से बचाना ही होगा।
इसके लिए आवश्यक रूप से स्थानीय पुलिस प्रशासन को चुस्त और क़ानून को कठोर बनाना होगा, संस्थाओं द्वारा लोगों में जागरुकता का संचार करना होगा, साथ ही, विज्ञापनों में परोसी जा रही भोंडी अश्लीलता या कहें नग्नता को समाप्त किया जाना चाहिए।
अकेली दिल्ली नहीं बल्कि हर ग्राम, नगर प्रान्त में जागरुकता और मानवता का पाठ पढ़ाना होगा। बच्चों के बस्ते से छीनी गई ‘नैतिक शिक्षा’ की पुस्तक को फिर से लौटना होगा। क्योंकि बाल मन के लोग जल्दी समझ जाते हैं।
जागरुकता के लिए तो लगातार प्रयत्न करने होंगे। अन्यथा एक दिन मलाल के सिवा कुछ भी हाथ में शेष नहीं आएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार, स्तंभकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
[लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।