राजा भरथरी चालीसा

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पुरी अवंती राज में, किया भृतहरी राज।
जन जन के थे लाड़ले, करते जन हित काज।।

पुरी अवंती नगरी पावन।
बहती शिपरा नीर सुहावन।।1
जय जय भरथरी महाराजा।
गोरख चेला राज समाजा।।32
राज अवंती महिमा भारी।
जन्में राजा मुनि सतधारी।।3
विक्रम संवत के अधिकारी।
जिनके अग्रज थे भरथारी।।4
इंद्रसेन सुत चंदरसेना।
धीर वीर अरु माधुर बैना।5
चन्द्रसेन से भये भरथारी।
जिनका जस गाते संसारी।।6
संत महत्मा सद्व व्यवहारी।
देवभाष कवि लोका चारी।।7
रूप देई माता के प्यारे।
सुंदर रूपा आंखन तारे।।8
अग्नि देव ने करी सहाई।
नगर गांव में खुशियां छाई।।9
नाम भृतहरी राज नरेशा।
महांकाल की कृपा विशेषा।।10
बालपने में विद्या पाई।
अस्त्र शस्त्र में भी निपुणाई।।11
सामा देई सुंदर नारी।
सिंहलद्वीप की राजकुमारी।।12
समय पाय जब भया विवाहा।
मंगलाचरण बहु पकवाना।।13
जब रानी को लाये राजा।
हरषे सब जन बाजे बाजा।।14
शयन कक्ष महराजा आये।
खटिया टूटी भेद न पाये।।15
एक बार गुरु गोरख आये।
चरण धोये आसन बैठाये।।16
आशीष गुरुदेव से लीना।
प्रसन्न गुरु अमरत फल दीना।।17
जनता के तुम पालन हारे।
न्याय धरम के हो रखवारे।।18
खाय अमर फल जुग जुग जीना।
अंत समय प्रभु का पद लीना।19
रानी तीसरि पिंगला प्यारी।
देकर महिमा कह दी सारी।।20
तुरतहि रानी लिया संवारी।
खुश खुशी सब रात गुजारी।।21
राजा खेलन गये शिकारा।
निज सेवक को लिया पुकारा।22
कोतवाल को तुरत बुलाया।।
प्रेम प्रसंगा गले लगाया।।23
हंसके बोली मेरे स्वामी‌।
तुम ही मेरे अंतरयामी।।24
खाओ यह फल जीवन पाओ।
सदा प्रेम का रस बरसाओ।।25
कोतवाल से वैश्या आया।
खुशी खुशी वह फल को पाया।26
मन में एक विचार समाया।
नफरत होती सुंदर काया।।27
क्यों न यह फल राजा दे दूं।
जीवन का सारा जस ले लूं।।28
लेकर वह फल राजा दीना।
राजा देख अचंभा कीना।।29
खाओ प्रभु भव आयुष्माना।
तीन लोक में कर कल्याणा।।30
मैं हूं एक कलंकित नारी।
तुम हो जनता पालन हारी।।31
जब सारी जांचें करवाई।
पिंगला से जब धोखा खाई।।32
राजपाठ से मुक्ती पाया।
विक्रम को गद्दी बैठाया।।33
मारा मृग गुरु जीवत कीना।
चमत्कार से भये अधीना।।34
तब गोरख से दिक्षा पाये।
खुशी खुशी गुरु के संग धाये।।35
एक गुफा में कुटी बनाई।
बारह सालों तक तप कीना।।।36
तीन मुक्तक काव्य बनाये।
सौ सौ श्लोका सभी रचाये।।37
श्रृंगार शतक युवा को भाया।
नीति राजा वैराग्य रचाया।।38
भाषा सरल मनोरम भाई।
संस्कृत साहित्य मान बड़ाई।।39
यह सब गुरु ने खेल रचाया।
राजा को वैराग्य दिलाया।।40

संस्कृत भाषा के कवी, तीन शतक आधार।
राज छोड़ वैराग्य बन, ऐसा लोकाचार।।

डॉ दशरथ मसानिया
आगर मालवा

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