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कमर लँगोटी सिर पर गमछा,
खेत खोदता लिए कुदाल।
आशाओं को दिल में भरकर,
फिर से भूला पिछला हाल।।
कभी बाढ़ में बह जाता सब,
या सूखे की भीषण मार।
महामारियाँ नोंच डालतीं,
बार – बार वह जाता हार।।
फिर भी देखो खड़ा हुआ है,
रचने को नूतन अध्याय।
अब तो जागो मीत हमारे,
अवध सभी को रहा जगाय ll
——अवधेश “अवध”
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