मैं नारी हूं

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मैं नारी हूं मैं नारी की ,
करुण व्यथा सुनाती हूं।
हजारों दर्द सहकर भी,
सदा मैं मुस्कुराती हूं।
मैं नारी हूं……
मां की कोख से मेरा ,
सुनो जब से हुआ उदगम।
ना पाया है सुकून मैंने,
पिए हैं आंसू ही हरदम।
मैं नारी हूं………..
खबर सुनकर बेटी की,
घर में मातम मनाया है।
कभी फेका गया कचरे में,
कभी मुझको बहाया है।
मैं नारी हूं……..
सिखाए काज सब घर के,
नारी का धर्म बताया है
भैया को पढ़ा करके ,
कुल का दीपक जलाया है।
मैं नारी हूं………
हुई थोड़ी बड़ी जो मैं,
विदा घर से किया मुझको।
नए सपने दिखा करके,
फिर से छोड़ा गया मुझको।
मैं नारी हूं…….
नई दुनियां मिली मुझको,
तो सोचा कुछ नया होगा।
मिटेंगे दर्द मेरे सारे,
जीवन खुशनुमा होगा।
मैं नारी हूं…..
सींच कर खून से अपने,
घर को मंदिर बनाया है।
किसी गैर को मैंने ,
खुदा अपना बनाया है।
मैं नारी हूं…..
गगन में उड़ने जब भी ,
पंख आतुर हुए मेरे,
बड़ी बेरहमी से फिर से,
पर काटे गए मेरे।
मैं नारी हूं…….
कभी तोड़ा गया मुझको,
कभी जोड़ा गया मुझको।
सबके के हाथ का केवल,
खिलौना समझा गया मुझको।
मैं नारी हूं ….
घर में रखा जब चाहा,
जब चाहा निकाला है,
जो खाया अबतलक मैंने,
वो गैरों का निवाला है।
मैं नारी हूं ……
बताए कोई तो मुझको,
कहां मेरा ठिकाना है।
क्या चीज़ है नारी ,
कोई अबतक ना जाना है।
मैं नारी हूं…..

रचना
सपना (स॰ अ॰)
जनपद औरैया

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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