आस्तीन के सांपों ने,
अपनों को ही डस डाला।
हंसते खेलते जीवन को,
देखो नरक बना डाला।
समझा जिनको शुभचिंतक,
जिनको अपनों सा प्यार दिया।
राज बताए जिनको अपने,
जिनपर पूरा ऐतबार किया।
गले से लगाया जिनको हमने,
जिनको दिल में बसाया।
समझा जिनको यारा अपना,
सुख दुःख में साथ निभाया।
गिरगिट जैसा रंग बदलते,
अपनों को ही डसते।
अपनी फितरत से बाज ना आएं,
पल पल चेहरे में बदलते।
पल भर भरोसा देते तोड़,
और पीठ पे खंजर देते भोंक।
आस्तीन के सांप हमेशा ,
हैं मुश्किल में संग देते छोड़।
रग रग में इनके झूठ बसा है,
चालाकी हर सांस में।
फरेब का खंजर हाथ में लेकर,
फिरते हैं आस्तीन के सांप ये।
लालच ,धोखा, मक्कारी,
हैं इनकी यही निशानियां।
देख फायदा अपना ये,
करते हैं ये शैतानियां।
घात लगाए बैठे हैं वो,
करने को हम पर वार ।
इनका सामना करने को,
हमको रहना है तैयार।
समय रहते ही इनकी ,
हम कर लें पहचान।
नहीं तो हम कर बैठेंगे,
अपना ही नुकसान।
अच्छे सच्छे मित्र बनाओ,
मत पालो आस्तीन के सांप।
यदि रहोगे सजग हम,
इन दुष्टों को जाएंगे भांप।
आस्तीन के सापों को,
अब ना दूध पिलाना है।
पहचान के ऐसे दुष्टों को,
अपने से दूर भगाना है।
सोच समझ करना भरोसा,
यूं ना करना विश्वास।
जौहरी सी परख सीखकर,
बनाना जीवन खुशहाल।
रचना
सपना (स० अ०)
प्रा० वि० उजीतीपुर
जनपद औरैया