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क्या करे तुम्हारे घर आकर हम,
अब तो याद नहीं करते हमे तुम।
हम सदा आते थे,जब कभी बुलाते थे तुम,
अब बुलाना छोड़ दिया,अब आए क्यो हम।
याद करते रहते है हम ये जानते हो तुम,
हिचकियां आती रहती है ये जानते है हम।
ये मेरा घर नहीं है,तुम्हारा है ये अब घर,
बुलाने की क्या जरूरत है आ जाओ तुम।
दिल से हक दिया तुमने,इसलिए जताते हम,
अगर मिलता नहीं ये हक,क्यो जताते तुम्हे हम।
हम तो खिलखिलाते है,पर खिलखिलाते नहीं तुम,
अगर एक बार खिलखिला दो मुस्करा देगे हम।।
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम
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