भारत का चीन से सीमाओं पर विवाद जारी है, गलवान घाटी में चीन के सैनिकों द्वारा धोखे से किए गए हमले में वीरगति को प्राप्त सैनिकों के बलिदान से संपूर्ण देश में आक्रोश है, जगह जगह चीन के समान के बहिष्कार का आहवान हो रहा है, चीनी राष्ट्रपति के पुतले जलाए जा रहे है। इसी बीच एक आश्चर्य करने वाली खबर आती है, जो अपेक्षा से कहीं अधिक साहस और पराक्रम जगाने वाली है यह कि शुक्रवार सुबह अचानक ही पीएम नरेंद्र मोदी लेह पहुंचे। सैन्य अधिकारियों के साथ चीफ ऑफ डिफेंस विपिन रावत भी उनके साथ थे। यह खबर भारतीय मीडिया समेत वैश्विक खबरों में सुर्खियां इसलिए है क्योंकि इस वक्त देश सीमा पर चीन से जूझ रहा है. पीएम मोदी का वहां पहुंचना रणनीतिक परिवर्तन या फिर ऐसा कह लें कि किसी नए ठोस कदम उठाए जाने की ओर संकेत करता है। जब देश का प्रधानमंत्री मोर्चे पर तैनात सैनिकों के पास उनके हाल चाल जानने पहुँचता है तो सैनिकों का साहस, आत्मविश्वास कितना चरम पर होगा यह एक सैनिक ही समझ सकता है। प्रधानमंत्री मोदी देश के करोड़ो भारतवासियों का आत्मबल लेकर सीमा पर पहुँचे है, सेना के जवानों को अपने सन्देश में साफ बताया कि विस्तारवादी युग अब समाप्त हो चुका है, अब विश्व विकासवाद की और आगे बढ़ रहा है, भारत अहिंसा का पक्षधर सदैव रहा परन्तु देश पर आक्रमण करने वाली शक्तियों को हमने कभी क्षमा नही किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में भारत माता के साथ ही उन माताओं को भी नमन किया जो अपने बेटों को सीमाओं की रक्षा के लिए भेजती है, देश को ऐसी माताओं पर गर्व है। प्रधानमंत्री का लेह जाना सामरिक दृष्टि से भारत के आक्रामक स्वरूप को दर्शाता है, विश्व में जो छवि नए भारत की जा रही है, वह आज के समय अनुरूप बहुत आवश्यक है। भारत न तो किसी को छेड़ने वाला है, किन्तु किसी के छेड़ने पर ना ही छोड़ने वाला है। सीमा पर बैठकों में चीन के नरम रुख के विपरीत उसकी सैन्य तैयारियां भारत को सचेत करने वाली थी, सदैव से चीन धोखे से काम करता आया है, एक तरफ बातचीत दूसरी तरफ सैन्य जमावट उसकी पुरानी युद्धनीति है, जिसे आज का राजनीतिक व सैन्य नेतृत्व अच्छे से जानता है, इसीलिए चीन के हर कदम पर भारतीय सेना ने भी बिल्कुल वैसी ही जमावट की है, जिससे किसी भी धोखे का मुहं तोड़ जवाब दिया जा सके। हम यह बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी का सीमा प्रेम आज से है ऐसा नही इस दौर का आरंभ 2014 में हुआ था, प्रधानमंत्री ने अपनी हर दीपावली सैनिकों के बीच ही मनाई। कभी अरुणाचल प्रदेश तो कभी जम्मू कश्मीर लद्दाख क्षेत्र में सैनिकों के बीच जाकर उनका मनोबल बढाना प्रधानमंत्री कभी नही भूलते।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी कई प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री चीन से सटी सीमाओं का दौरा करते रहे है, चीन ने हर राजनयिक दौरे पर आपत्ति जताई, विस्तारवादी चीन तिब्बत सहित अरुणाचल पर भी अपना अधिकार जताता है, जब भी भारत का कोई बड़ा नेतृत्व अरुणाचल प्रदेश गया तब तब चीन ने एक षड्यंत्र के तहत इस यात्रा का विरोध किया। बीते समय में प्रधानमंत्री मोदी व ग्रह मंत्री अमितशाह के अरुणाचल प्रदेश दौरे पर भी चीन ने आपत्ति जताई थी। यह उसकी रणनीति रही है, बार बार विरोध करके दूसरे देश की सीमाओं पर अपना अधिकार जताना, बिना विषय के विवाद करना, डराना, धमकाना, और यदि शत्रु कमजोर दिखाई पड़े तो धोखे से जमीन पर अधिकार कर लेने की नीति पर ही कई वर्षों से चीन चला है, वास्तविक चीन आज के चीन से आधा भी नही था, तिब्बत, मंगोलिया, किर्गिस्तान, हांगकांग, ताइवान आदि देशों पर कब्जा करके इसने अपना क्षेत्र इसी नीति से बढाया।
अमेरिकी नौसेना दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र का समर्थन करते हुए ‘ड्यूल कैरियर ऑपरेशन’ और अभ्यास कर रही है। भारत और चीन के बीच लद्दाख में महीनों से चल रहे सीमा गतिरोध के बीच अमेरिकी नौसेना का यह अभ्यास दर्शाता है कि वह भारत के साथ है। अमेरिका ने अपने 3 जंगी जहाजों को हिन्द महासागर क्षेत्र में तैनात कर डियाज इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन के दक्ष दक्षिणी चीन सागर में हस्तक्षेप से हॉन्ग कोंग ताइवान फिलीपींस ऑस्ट्रेलिया सहित कई देश चिंतित हैं चीन के बढ़ते विस्तार वादी अतिक्रमण को देखकर अमेरिका ने यह बहुत बड़ा निर्णय लिया जो एशिया में चीन को घेरने के लिए कारगर सिद्ध होगा यदि भारत और चीन में युद्ध के कोई समीकरण बनते हैं खुले प्रशांत महासागर में डटे हुए है, अमेरिकी जंगी जहाज भारत का सहयोग करेंगे ऐसी अपेक्षा की जा सकती हैं क्योंकि चीनी वायरस कोरोना के कारण विश्व में हुए नरसंहार के कारण पूरा विश्व जगत चीन से नाराज हैं वहीं अमेरिका ने भी इस चीनी वायरस कोरोना के कारण बहुत बड़ी त्रासदी झेली है और आज तक भी अमेरिका उस महामारी के प्रकोप से लड़ रहा है इसलिए चीन को क्षमा करने का कोई भी कारण अभी नजर नही आ रहा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी का रुस दौरा भी बहुत महत्वपूर्ण था, अतीत के झरोखे से इस समीकरण को देखेंगे तो जानेंगे कि जब 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय व स्थानीय बंगालियों पर होते अत्याचारों से क्रोधित होकर भारत ने एक साहसिक कदम उठाकर पाकिस्तान पर आक्रमण किया था, तब उस समय पाकिस्तान के हितैषी रहे अमेरिका ने अपने जंगी जहाज हिन्द महासागर के निकट तैनात कर दिए थे, और चीन भी मित्र देश पाकिस्तान के संभावित खतरे को देखते हुए भारत पर हमला करने के लिए सैन्य तैयारियों में जुट गया था, ऐसे समय रूस ने दृढ़ता से एलान किया था कि यदि किसी भी स्थिति में चीन भारत पर आक्रमण करता है तो रूस चीन पर आक्रमण कर देगा यह उस समय व्यापक प्रभाव डालने वाला वक्तव्य था क्योंकि उस समय अमेरिका नहीं रूस विश्व की सबसे बड़ी शक्ति हुआ करती है और आज भी रूस विश्व की एक बड़ी शक्ति है भारत को हर प्रकार से सैन्य सहायता सैन्य उपकरण फाइटर जेट व रक्षा प्रणाली उपलब्ध कराना यह भी बहुत महत्वपूर्ण निर्णय हैं क्योंकि चीन व भारत के विवाद के कारण रूट तटस्थ रहने की नीति अपना सकता था परंतु वर्तमान के सहयोग को देखते हुए यह अपेक्षा की जा सकती है कि रूस भारत के समर्थन में रहेगा सामरिक दृष्टि से इतना भी बहुत महत्वपूर्ण है। अब देखने वाली बात है चीन का यहां से पीछे हटना उसकी मुश्किलें बढ़ाएगा और आगे बढ़ेगा तो भारत सहित विश्व के कई देशों के आक्रोश का सामना करना होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने लेह जाकर इस षड्यंत्र को अब चीन की किरकिरी बना दिया, क्योंकि भारत ने जैसी तैनाती और मुस्तेदी दिखाई उससे विश्व में बहुत अच्छा सन्देश गया। आत्मनिर्भर भारत के संकल्प से देश ने स्वदेशी और भारत में निर्माण पर बल दिया है, आने वाले भविष्य में निर्माण के क्षेत्र में और अधिक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेंगे। देश का ग्राहक भी अब चीनी वस्तुओं को मना करने लगा है, देश के व्यवहार में यह सकारात्मक परिवर्तन बना रहना चाहिए।
मंगलेश सोनी
मनावर (मध्यप्रदेश)