मंदिर मस्जिद और,
गुरुद्वारा में गये।
श्रध्दा से सिर को,
झुकाया वहां पर।
और कि प्रार्थना,
समाने उनके बैठकर।
हे प्रभु सुन लो,
अरज मेरी तुम।
और दे दो वरदान,
अमन चैन से रहने का।
ताकि खुश रह सके,
अब देशवासी जन।।
कितनी बेचैनी मची है,
लोगो के परिवार में।
डर का माहौल है,
अपने ही समाज में।
और सुने पड़े है,
शहर के गली मोहल्ले।
मिलने जुलने का समय,
अब निकला जा रहा है।
दूरभाष से ही हालचाल,
अब पूछे जा रहे है।
और भारतीय संस्कृति का,
अब अंत सा हो रहा है।।
सारे संबंध अब,
छूटे जा रहे है।
काम काज का भी,
अब अंत सा हो रहा है।
आर्थिक तंगी भी अब,
समाने आन पड़ी है।
घर के कर्ताधर्ता सब,
हाथ पे हाथ धरे है।
घर की सब गृहणी,
अब परेशान हो रही है।
कैसे मिलेगा हम सबको,
इस माहामारी से छुटकारा।।
संजय करता है प्रार्थना,
उस पालन हार से।
कुछ तो करो समाधान,
जिससे मिले शांति विश्व को।
इसलिए अपने चरणों में,
दे दो हमे जगह तुम।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।