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भाईयो हम तो आजमाए हुए हैं।
देख लो इसलिए ठुकराए हुए हैं।।
डाक्टरों का भ्रष्टाचार कोरोना है।
मंदबुद्धी पे इतना इतराए हुए हैं।।
विज्ञानिक ठहर न पाया एक भी।
महामारी ने यूँ हाथ बढ़ाए हुए हैं।।
भिखारियों से कहाँ अच्छे हैं वह।
जिन डाक्टरों से हम सताए हुए हैं।।
हम तो प्रशंसक हैं भले डाक्टरों के।
जो आज भी मन में समाए हुए हैं।।
कोरोना शोरोना कुछ भी तो नहीं।
बस कुकर्मों का फल खाए हुए हैं।।
इंदु भूषण बाली
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