दरअसल किस्सा वहीँ से शरू हुआ
जब प्रेम में भीगे दो मनुष्यों का मिलन हुआ
और आबाद होने लगी ये दुनिया
दो पत्थरों का प्रेम ही था वह शायद
जो चमक उठा था घर्षण के साथ
आँसुओं के निर्माण से पहले
आक्सीजन और हायड्रोजन में भी
प्रेम की आहट हुई होगी जरूर
बीज को मिटटी और नमी का जब मिलता है प्रेम
तो धूप में हरी पत्तियाँ निकल आती हैं
रसों के मिलन के बाद खिल ही जाते हैं फूल
दरकने लगते हैं पहाड़
जब कम होने लगता है प्रेम
बस्तियां जलने लगती हैं
तटबंध टूट जाते हैं
विश्वास बह जाता है सारा
जारी रहेगा जीवन का यह किस्सा
धड़कता रहेगा जब तक प्रेम अनंत
नष्ट नहीं होगी कभी
यह ख़ूबसूरत दुनिया.
ब्रजेश कानूनगो
इंदौर
परिचय
ब्रजेश कानूनगो
शिक्षा : हिंदी और रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री)
प्रकाशन:
व्यंग्य संग्रह – पुनः पधारें, सूत्रों के हवाले से, मेथी की भाजी और लोकतंत्र।
कविता संग्रह- धूल और धुंएँ के पर्दे में,इस गणराज्य में,चिड़िया का सितार, कोहरे में सुबह।
कहानी संग्रह – ‘रिंगटोन’।
बाल कथाएं- ‘फूल शुभकामनाओं के।’
बाल गीत- ‘ चांद की सेहत’।
उपन्यास- ‘डेबिट क्रेडिट’।
आलोचना (साहित्यिक नोट्स) – ‘अनुगमन’।
यात्रा डायरी/संस्मरण- ‘रात नौ बजे का इंद्रधनुष’।
संप्रति: सेवानिवृत्त बैंक अधिकारी। साहित्यिक,सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में संलग्न। तंगबस्ती के बच्चों के व्यक्तित्व विकास शिविरों में सक्रिय सहयोग।