व्यक्तिगत साहसिक कार्य के लिए दी गई रुपये-पैसे की मदद को ‘सब्सिडी’ अर्थात आर्थिक सहायता’ कहते हैं। जिसे भिक्षा कहना ‘साहसिक व्यक्तित्व’ का अपमान है।किंतु इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि आर्थिक सहायता उसी को दी जाती है, जो आर्थिक रूप से कमजोर होता है।
ऊपरोक्त आर्थिक सहायता विभिन्न साहसिक क्षेत्रों में दी जाती है।ताकि उन साहसिक क्षेत्रों के उद्मियों को बढ़ावा मिल सके। जिससे राष्ट्र का सदृड़ निर्माण हो।
सर्वविधित है कि सदृड़ राष्ट्र निर्माण में कलमकारों की भूमिका विशेष रही है।जिन्हें समाज का दर्पण भी कहा जाता है। इसलिए कलमकारों को भी ‘सब्सिडी’ देने का प्रावधान है।ताकि वे अपनी रचनाओं को पुस्तक का रूप देने में असमर्थ न हों।
अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ‘सब्सिडी’ किसे मिलनी चाहिए और किसे नहीं मिलनी चाहिए? तो उत्तर स्पष्ट है कि सर्वप्रथम आर्थिक कमजोर कलमकार को प्राथमिकता दी जाए। जैसे सरकारी कर्मचारियों,अधिकारियों से पहले निजी श्रमिकों को चयनित कर मौका दिया जाए।
परंतु जमीनी स्तर पर देखा जा रहा है कि भ्रष्ट व्यवस्था के चलते ‘सब्सिडी’ देने वाले सरकारी अधिकारी अपने स्वार्थ हेतु नियमों को ठेंगा और राष्ट्र को तिलंजली देते हुए आर्थिक सम्पन्न कलमकारों को ‘सब्सिडी’ अर्थात आर्थिक सहायता दे रहे हैं।जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं बल्कि सदृड़ राष्ट्र निर्माण में भीमकाय बाधा है।
#इंदु भूषण बाली
जम्मू कश्मीर