मेरी बातों पर कुछ ऐसे वो शर्माती थी,,
रख कर उंगली होठों पर वो मुझे चुप कराती थी,,
कैसे भूलू वो मिलन की रातें, कैसे खुद को समझाऊ क्या होती है विरह वेदना, क्या तुमको बतलाऊं,
मेरे हाथों से कैसे वो अपने हाथों को छुड़ाती थी,,
रख कर उंगली अपने होठों पर वो मुझे चुप कराती थी प्रेम है पावन, प्रेम है उपवन, प्रेम कोई बाजार नहीं,,
प्रेम तपस्या, प्रेम है पूजा, प्रेम कोई व्यापार नहीं,,
इन्हीं बातों को अक्सर वो मुझको समझाती थी,,
रख कर उंगली होठों पर वो मुझे चुप कराती थी,,
उसके वादे पूरे पक्के, कसमें बिल्कुल सच्ची थी,,
नादानी इतनी गहरी थी, मानो जैसे कोई बच्ची थी,,
खुद की अदा पर ही वो देखो वो कितना इतराती थी,,
रख कर उंगली होठों पर वो मुझे चुप कराती थी,,
#सचिन राणा हीरो
हरिद्वार (उत्तराखंड)