गांधी फिर कब आओगे
जनमानस के सुप्त पटल से
छुद्र स्वार्थ हटाओगे।
बापू क्या फिर आओगे।।
जाति पाती ही ध्येय बना
धर्म के ठेकेदारों का
मन्दिर मस्जिद में जूझे जनता
खेल वोट बंटवारे का
सत्य अहिंसा नारे बन गए
जनता को भरमाने का।।
बढ़ती पशुता नग्नता सी
कैसी वैचारिक विषमता है
मानवता शर्मिंदा होती
ये कैसी समरसता है।
चरखा पर हम सूत कातते,
स्वालम्बन कभी सिखाओगे।
भटकी देश की जनता सारी
गांधी फिर कभी आओगे
खादी बन गया सपना देखो
चरखा गरीब ही कात रहा,
नारा स्वदेशी का देते देते
विदेशी को अपना रहा।
सत्याग्रह को अस्त्र बनाकर
स्वराज फिर लाओगे
पूछ रही है जनता सारी
गांधी फिर कब आओगे
बापू तुम फिर आओगे।।
#अविनाश तिवारी
जांजगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)