मोहब्बत का अहसास होता ही रह गया,
पता नही मैं कब तक सोता ही रह गया ।
मोहब्बत किया था मैंने उससे एक दफा,
पर कहने की हिम्मत जुटाता ही रह गया ।
दिल में तो मेरे काफी ख्याल थे उसके लिए,
पर आज या कल कहूँ सोचता ही रह गया ।
जगाना था प्यार भरा भाव उसके दिल में,
मैं तो उसके दिल में विष बोता ही रह गया ।
है मोहब्बत की उस राह पर खड़ा, सौरभ,
अहसास मोहब्बत का करता ही रह गया ।
कभी जीता था मैं उस माशुका के प्यार में,
उसी के प्यार में आज मैं रोता ही रह गया ।
पाना था उसकी मोहब्बत को मुझे किसी पल,
प्रतिदिन मोहब्बत उसकी खोता ही रह गया ।
अहसासों में उसे ढूँढ़ता फिर रहा हर गली,
ना चाहते हुए भी हर-पल मरता ही रह गया ।
सौरभ कुमार ठाकुर
बाल कवि एवं लेखक
ग्मुजफ्फरपुर (बिहार)