वुमन आवाज़ भाग-2

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नारी यानि ‘’असीम शक्तियों का एक तेज पुंज ।’’ सृष्टि रचियता ब्रम्हा ने जब नारी की रचना की, तो नारद मुनि से मंथन करते हुए चिंतित स्वसर में कहा कि मेरी यह अनमोल कृति अपने समस्तम दायित्वोंु के निर्वहन में सक्षम होगी, हर समस्याे का समाधान करने की इसमें क्षमता होगी, संपूर्ण परिवार की देखरेख करने के साथ ही प्रत्ये क प्राणीमात्र के प्रति दयाभाव इसके हृदय में होगा । पर इसमें एक बहुत बड़ी कमी यह है कि इतना सब होने के बावजूद इसमें स्वमयं के अस्तित्वह अथवा वजूद को समझने और साबित करने का सामर्थ्य नहीं हैं । पर मैं समझती हूं कि ‘’वूमन आवाज़’’ के क्रांतिकारी आगाज़ ने स्त्रीू की इस कमी को भी पूर्णता प्रदान कर सिद्ध कर दिया कि आज की नारी घर की चारदीवारी के भीतर अपनी जिम्मेधदारियों को बखूबी निबाहने के साथ ही देश-समाज में अपने नाम से अपनी पहचान बनाने और अपनी काबिलियत के बल पर समाज में अनुकरणीय उदाहरण स्थाहपित करने में सक्षम हैं ।
आधी आबादी के युग का प्रचंड आरंभ करने वाली, समाज का नव-सृजन कर अपने हिस्से का नीलाभ आकाश स्व,यं बुनने वाली स्त्री के रूप में परिभाषित कर ‘’वूमन आवाज़ भाग-2’’ ने संपूर्ण देश में नवक्रांति का आगाज़ किया हैं ।
देश के कोने-कोने से सशक्‍त लेखनी के माध्य’म से अपने मनोभावों को कागज़ पर उतार कविताएं, लघुकथाओं का सृजन कर न केवल अन्या बहनों को अपनी पहचान बनाने को प्रेरित करने की पहल की वरन् अपनी क्षमताओं को निखार कर अपने जीवन को उद्देश्यकमय बनाते हुए स्वमयं से प्रेम की अनुगूंज सरगम गुंजित की ।
वूमन आवाज़-2 पत्रिका के प्रथम से लेकर अंतिम पृष्ठव तक नारी के विविध रूपों, क्षमताओं, भावनाओं और उसके विचारों को लेखनी के आकर्षक इंद्रधनुषी रंगों में सजाकर जहां एक ओर कुछ बहनों ने अंधियारें में जलता दीप, क्यासरी में खिलते पुष्पे की संज्ञा से विभूषित किया वहीं अन्यज ने दरिंदगी का शिकार बनाने परनिशाचों की घृणित मानसिकता और समाज में स्त्रीर की दीन-हीन स्थिति को व्यसक्त् कर ‘’वूमन आवाज़’’ के माध्यमम से समस्ती नारियों को स्वतयं पर होने वाले अत्याकचारों के विरूद्ध आवाज़ उठाने को प्रेरित किया ।
बेशक हमारी भारतीय पुरातन संस्कृ ति की मान्यिता के अनुसार सदियों से नारी को पूजनीय और कन्याुओं को देवी स्व रूप मानकर पूजा जाता रहा हैं, पर आज के तथाकथित सुसंस्कृसत और वैज्ञानिक युग में भी स्त्रीे को मात्र उपभोगयोग्यप जानकर दोयम दर्जे का माना जाना उसपर घोर अत्या चार सम्यक ही हैं । क्या हुआ जो नाजुक शारीरिक संरचना के कारण पुरूष से तुलनात्मकक दृष्टि से स्त्री् अपेक्षाकृत कम बलिष्ठर हैं, पर सच तो यह है कि उसकी भावप्रवणता, संवेदनशीलता, दूरदर्शिता और असीम कार्यक्षमता का लोहा पुरूष भी समझता हैं, और शायद इसी अहंभाव के चलते वह स्‍त्री पर अंकुश लगाकर अपना थोथा पौरूषत्वी बरकरार रखना चाहता हैं । ऐसे ही कुछ उद्गार ‘’वूमन आवाज़-2 ’’ पत्रिका में शामिल लेखिकाओं ने अपनी कलम के माध्य म से उज़ागर करने का प्रयास किया हैं ।
लेखिकाओं ने अपनी रचनाओं में नारी की महत्ताम को इंगित करते हुए बताया कि मकान को घर बना अपने हुनर से कोने कोने को गुलज़ार करने वाली स्त्री आंगन में सजी रांगोली या कि क्यागरी में खिलते फूल की तरह होती है । इसे पराया धन करके अनमानित करना या मां की कोख में जन्म के पहले ही हमेशा-हमेशा के लिए सुला देने जैसे अमानवीय कृत्योंम से समाज और देश की बहुत बड़ी क्षति होगी । अत: देश के कोने-कोने में ‘’बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं’’ को कार्यान्वित कर उसे यथोचित सम्माोन और उसका अधिकार देकर उन्नओति के नूतन क्षितिज़ की ओर अग्रगामी होना ही समाज के लिए हितकर होगा । बेशक स्व यं को सिद्ध करने के लिए खुद से प्रेम करना, एकांत में स्वरयं से बातें करना, अपनी पसंद-नापसंद को बिंदास बयां करने का आत्माबल जुटाना और प्रत्ये क परिस्थिति से निपटने के लिए खुद पर अटूट विश्वामस बनाये रखना आदि ऐसी कितनी ही बातें हैं जो आज नारी ने अपने स्वयभाव में अंगीकार की हैं और अपनी सुप्तअ क्षमताओं को चेताकर धरा से लेकर अंतरिक्ष तक प्रत्येीक क्षेत्र में विजय पताका थाम अपने बेमिसाल नेतृत्वत, निर्णयन क्षमताऔर दूरदर्शिता का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुवत कर साबित कर दिया हैं कि स्त्रीर अपनी पहचान के लिए किसी की मोहताज़ नहीं । क्यों कि नि:संदेह वूमन आवाज़ की एक प्रति के साथ ही देश के कोने-कोने से स्त्रियों का काफिला देश-समाज की प्रगति में स्वहयं की बराबर की हिस्सेैदारी को सिद्ध करने के लिए आगे बढ़ जाता हैं ।
‘’वूमन आवाज़ भाग-2’’ की बेहद खूबसूरत, अनूठी और प्रेरक पहल के लिए संपादकीय टीम को अनेक साधूवाद । आशा ही नहीं विश्वाखस हैं कि आधी आबादी के प्रचंड आरंभ के माध्याम से नारी के अंतस की आवाज़ संपूर्ण धरा पर प्रसारित होगी और साथ ही स्त्री स्वासतंत्रय की भरसक क्रांति की मशाल जलायेगी ।
अंजली खेर, भोपाल (म.प्र)

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