यादों के झरोखे से ,,,

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edris
यादों के झरोखे से ,,,
फ़िल्म दोस्ती 1964
फ़िल्म समीक्षक इदरीस खत्री क्लासिक फिल्मो को लेकर शुरू कर रहे है
यादों के झरोखे से ,,, में आज
फ़िल्म दोस्ती से जुड़ी कुछ यादें
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जाने वालों ज़रा मूड के देखो,, या चाहूँगा तुझे सांझ सवेरे,,,,
राही मनवा दुख की चिंता,,
मेरा तो जो भी कदम है,,,
इन सदाबहार नगमों से सजी फ़िल्म दोस्ती
जिसका निर्देशन किया था सत्येन बोस, निर्माण कम्पनी थी ताराचंद बड़जात्या की राजश्री प्रोडक्शन यानी आज के सूरज बड़जात्या(मैंने प्यार किया)का परिवार
फ़िल्म में दुर्घटनावश एक लड़का अपना पैर गवा देता है उसकी मुलाकात एक आंखों से दिव्यांग साथी से होती ही जो कि दोस्ती में तब्दील हो जाती है,,
फ़िल्म आज के निर्माता निर्देशक, अदाकार संजय खान की पर्दापड फ़िल्म थी, साथ ही फरीदा जलाल बाल कलाकार में दिखी थी
फ़िल्म के मुख्य किरदार थे सुशील कुमार और सुधीर कुमार,
दोस्तो इस फ़िल्म की चर्चा का सबब यह है कि इस फ़िल्म ने बिना कोई बड़ी स्टारकास्ट के सफलता की नई इबारत लिख दी थी,फिल्म ने ठेरो पुरुस्कार बटोरे,
संगीत और गाने मकबूलियत की बेशुमार बुलन्दी पर पहुचा था
संगीत पिरोया था लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने
गीतकार थे मज़रूह सुल्तानपुरी,
फ़िल्म की
कहानी लिखी थी बाण भट्ट ने साथ ही इन्हें सर्वश्रेष्ठ कथा लेखन का फ़िल्म फेयर सम्मान से भी नवाजा गया,
गोविंद मुनीस को सर्वश्रेष्ठ पटकथा फ़िल्म फेयर मिला था
फ़िल्म में कुल 6 गाने थे जिसमें से 5 मुहम्मद रफ़ी ने गाए थे साथ ही गाना- चाहूँगा मै के लिए फ़िल्म फेयर भी मिला,
सत्येन बोस को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फ़िल्म फेयर से भी नवाजा गया था,
मज़रूह सुल्तानपूरी को गाना चाहूँगा मैं के लिए फ़िल्म फेयर मिला था
फ़िल्म को कूल 7 विभिन्न आयाम में फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिले
सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म
निर्देशक,
संगीतकार
कथा
पटकथा,
गीतकार
गायक
2घण्टे 22 मिंट की सीमित संसाधनों से सजी फ़िल्म ने भारत मे उस वक्त में 2 करोड़ का व्यापार किया और विश्वस्तरीय कारोबार 4 करोड़₹ भारतीय सिनेजगत में ऐसा धमाका किया कि यह क्लासिक फिल्मो के साथ फ़िल्म जगत को नई ऊंचाइयों पर स्थापित कर दिया,
फ़िल्म के अदाकार सुधीर कुमार, और सुशील रातो रात स्टार बन गए थे, हर कोई निर्देशक उन्हें अपनी फिल्म के लिए साइन करने की होड़ में था
अचानक एक अफवाह आई कि दोनों अदाकारों का एक कार दुर्घटना में अंत हो गया जो कि दुर्घटना करवाई गई थी दिलीप कुमार के द्वारा लेकिन यह अफवाह केवल कोरी अफवाह साबित हुई
बात निकली है तो एक किस्सा ताराचंद बड़जात्या साहब का सुना देता हूँ
संघर्षरत दिनों में अमिताभ बच्चन काम की तलाश में राजश्री के दफ्तर पहुचे लेकिन बात बनी नही, फिर महमूद की अनुसंशा(रिकमेन्ट) पर बड़जात्या के सहयोगी राज ग्रोवर ने अमिताभ के साथ मीटिंग तय की अमित साहब दौरे फैशन के कपड़े यानी चुस्त पेंट,शर्ट पहन कर पहुच गए मिलने जिसमे उनका कद और ज्यादा लम्बा दिख रहा तो बड़जात्या साहब ने अपमान करते हुवे कहा कि
“”इतनी लंबी हीरोइन कहा से लाएंगे, केवल ऊंटनी को कास्ट करना पड़ेगा और ऊंटनी अभिनय नही कर पाएगी”” दोस्त अभिनय का ख्याल छोड़ दो और पिताजी की तरह गाने, कविताए, कहानी लिखो
और अमिताभ बिना कोई खुशख़बरो लिए अपमानित होकर निकल गए फिर उसके 2 साल बाद
*अमिताभ की फ़िल्म आनन्द आई जो कि बड़ी हिट साबित हुई*
बड़जात्या साहब ठहरे शुद्ध व्यापारी सिफ़त(प्रकृति)व्यक्तित्व वह सीधे पहुचे अमिताभ के पास और अपनी फिल्म सौदागर-1973, का प्रस्ताव दिया जिसे अमिताभ ने बिना पुरानी बातों को याद किये सहर्ष स्वीकार कर लिया, फ़िल्म में हीरोइन नूतन थी,
किस्से तो बहुत से दफन है दिलो दिमाग मे लेकिन यह किस्सा महानायक से जुड़ा था तो परोस दिया
खैर अब सूरज बडजात्या ने राजश्री का काम सम्भाल लिया है
प्रेम रतन धन पायो तक,,,
*यादों के झरोखे में आज यही विराम फिर हाज़िर होंगे नए अतीत के  झरोखे के साथ*,,,,

#इदरीस खत्री

परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| इनका परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।

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