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देखो बसंत की ऋतु है आई।
धरा को कंचन सा है सजाई।
लहरा रही है सरसों ये प्यारी।
हरियाली को भी संग- संग लहराई।
संग फूलों की खुशबू चली आई।
सोलह श्रृंगार से सजी है क्यारी।
प्रकृति भी बदली-बदली नज़र आई।
मानो प्रेम के गीत गा रही।
कर्ण प्रिय लग रही कोयल की बोली।
मीठी धुप भी हमें ललचाती।
पवन छुकर कर रही दीवानी।।
देखो बसंत की ऋतु है आई।
लग रही सबको बड़ी मस्तानी।
#भारती विकास(प्रीति)
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