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भगवान माने क्या?
इन्सान माने क्या?
माने या न माने
सब खेल-खेल बहाने
क्या हम किसी की माने
है सब लुभावने सपने सुहाने
किसी होर की बात माननी है
क्योकि उसे लोग जानते है
या उसका पहनावा पहचानते है
आज हमारे वस्त्र फ़टे ही सही।
खुद को काबिल करलेंगे
धागा चलने को।
आरे दुसरो के हिदायसी
अपनी सीरम भी कसो
दुनिया भाग वाली जग में जाने को।
प्रेरणा दूजो से लेते है
हिदायते हमें देते है।
यह कहा के बुद्धिजीवी
जो मुँह पर नही-
पिट पीछे हस्ते है।
#सुरेन्द्र कल्याण
करनाल (हरियाणा)
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