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लबों पे लेकर निकले हैं इंकलाब का नारा लोग,
बदलेंगे तस्वीर वतन की हम जैसे आवारा लोग,
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ऐसी आँधी आएगी ज़ालिम तू भी बच ना पाएगा,
सीना तान कर खड़े हुए हैं बेघर बेसहारा लोग,
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कर लीं जितनी करनी थी फरियादें गूँगे बहरों से,
अब ना दोहराएंगे ऐसी गलती कोई दोबारा लोग,
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कशकोल नहीं शमशीरें हैं अब आवाम के हाथों में,
जो भी राह में आएगा कर देंगे पारा-पारा लोग,
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छुपने की कोई भी तुमको जगह नहीं मिल पाएगी,
निजाम पलटकर रख देंगे तेरा सारा का सारा लोग,
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भरत मल्होत्रा।
परिचय :-
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
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