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कलमकार का फन कागज़ो पर उतर रहा।
धीरे-धीरे सही सँवर लेखनी का स्तर रहा।
लेखक के लिए लिखना रहा आसां कहाँ।
हमेशा से ही समझिए इक नया भँवर रहा।
सियासत भी प्रभावित करती रही कलम को।
महानुभावो की प्रशंसा ही करना ज़बर रहा।
नही स्वतन्त्र हर कलम ये बात जान लीजै।
कभी कही कोई कलम झलता सा चँवर रहा।
कलम की ताकत को जो नही समझा यहाँ।
“दर्द-ए-दुनिया”से हरदम सुधा वो बेखबर रहा।
सुधा भारद्वाज”निराकृतिविकासनगर(उत्तराखंड)
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