ज़िंदगी को भी तो हमसे यूं गिला हो जैसे
दर्द उसको भी मुहब्बत में मिला हो जैसे।।
देख ले मेरा भी कोई मुक़द्दर यहाँ पे
यार के प्यार की अब कोई दुआ हो जैसे।।
मर गया वो पतंगा भी तो इश्क़ में ही
अब मुहब्बत से ही होती हैं नफ़ा हो जैसे।।
भूख़ी आत्मा को तो कुछ भी न दिखाई देता
वास्ता उसका हैं रोटी से ज़िया हो जैसे।।
दर्द को हमने ही अपने गले में बाँधा हैं
ज़िंदगीकोई यहाँ पे हैं सज़ा हो जैसे।।
परिचय :
नाम-. मो.आकिब जावेदसाहित्यिक उपनाम-आकिबवर्तमान पता-बाँदा उत्तर प्रदेशराज्य-उत्तर प्रदेशशहर-बाँदाशिक्षा-BCA,MA,BTCकार्यक्षेत्र-शिक्षक,सामाजिक कार्यकर्ता,ब्लॉगर,कवि,लेखकविधा -कविता,श्रंगार रस,मुक्तक,ग़ज़ल,हाइकु, लघु कहानीलेखन का उद्देश्य-समाज में अपनी बात को रचनाओं के माध्यम से रखना