वही डेढ़-दो बज रहे होंगे।कबाड़ी के दुकान में काम कर रहा दुखना मालिक से बोला-“मालिक खाए खातिर 50₹ दे देते।”
मालिक-“खाना…..! होटल में खाएगा! घर से टिफीन लेकर क्यों नहीं आया?”
दुखना-“मालिक, कनिया के बोखार लागल रहै खाना नै बनैलकै।”
मालिक-बहाना छोड़, आ ई बता कि एक टाईम 50₹ का खाएगा तो घर क्या…….(अपशब्द) ले जाएगा? 30₹ देता हूँ हाफ प्लेट खा लेना।पैसे देने वाले हीं थे कि फोन बज उठा। पैसे हाँथ में हीं रहा और फोन पर लग गये-“क्या हुआ जानू?बच्चे तंग कर रहें हैं क्या?”
पत्नी-“हाँ तो आपको क्या? बच्चे केवल मेरे हीं है न।कभी बीच में पूछते भी हो कैसे झेल रही हूँ मैं?”
मालिक-“ओ हो !तुम भी न!खामोख्वाह गुस्सा करती हो,बच्चे हैं थोड़ा-बहुत…….।”
पत्नी-“अच्छा बात मत बनाओ और सुनो, आज रात खाना नही बनाऊँगी कहीं बाहर चलेंगे डिनर पे।सबेरे आ जाना।”
फोन कटा तो मालिक का ध्यान सीधे दुखना पर गया।उसने ₹200 का नोट निकाला और दुखना को देेते हुए कहा-“काम छोड़ दुखना,घर जा कनिया को देख और सुन कनिया के लिए भी होटल से खाना पैक करवा लेना मेरे नाम पर।”
परिचय : नवीन कुमार साह बिहार राज्य के समस्तीपुर स्थित ग्राम नरघोघी में रहते हैं। श्री साह की जन्मतिथि १६ अप्रैल १९९४ है। दरभंगा (बिहार) से २०१५ में स्नातक (प्रतिष्ठा) की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही अभी बी.एड. जारी है। अध्यापन ही आपका पेशा है। वर्तमान सृजन (द्वितीय) विमोचनाधीन है। कई पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है। आप छंद, लघुकथा व छंदमुक्त कविताएं लिखते हैं।