बच्चे का रुदन
उसके आगमन से
होता शुरु।
हर दर्द के साथी
आँसू।
व्यस्क होने पर
छुप कर रो लेता।
माता पिता से भी
नहीं कुछ कहता।
कभी प्रेम में
ठुकराए कोई।
रो कर वह दर्द
पी लेता है।
नौकरी न मिले तो
बेरोजगारी होने
का दंड रोकर
भोग लेता है।
कोई क्या जाने
उसकी पीडा।
बस लेखनी से
कह देता है।
पन्ने पर आँसू गिरते
शब्द बनते बिगडते हैं।
कुछ भी कहो आँसू
ही अपने होते हैं।
आती प्रिय की याद नैन से,
झर-झर बहते हैं आँसू,
पलकें जातीं भीग याद में अपनों की,
कट जाती है रात गोद में सपनों की
जन्म से लेकर मृत्यु तलक
दुख सहते रहते हैं आँसू
हर शिशु पैदा होते ही है रोता
बालकपन में जिद कर नैन भिगोता
बेकारी में भागदौड़ से,
परेशान हो भरी जवानी नित दुख ढोता
छोड़ अकेला जाए कोई,
तब निर्झर से झरते आँसू
#कृष्ण कुमार सैनी”राज”,दौसा,राजस्थान