जिंदगी के खेल में मात हुई, तजुर्बा तो हुआ।
उन्हें हम से चाहत नही, फैसला तो हुआ।
वो कुबूल करे के न करे,ये उन की है मर्जी,
हर अंजुमन में, मौहब्बत का चर्चा तो हुआ।
अब भी आते है उन के ख्वाब पिछले पहर,
वो दिल से दूर नही, नजर का फासला तो हुआ।
जिंदगी के मसअलों में रहते है मशरूफ,
माजी को भुलाने का अब ये भी रास्ता तो हुआ।
लौटा हूँ मै अपने गाँव, एक मुद्दत के बाद,
माँ की पथराई आँखों से फिर सामना तो हुआ।
#ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “
नाम – ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “
व्यवसाय – पश्चिम मध्य रेल में बनखेड़ी स्टेशन पर स्टेशन प्रबंधक के पद पर कार्यरत
शिक्षा – एम.ए. ( अर्थशास्त्र )
वर्तमान पता -भोपाल( म . प्र .)
रूचि – लेखन , फिल्म निर्माण, पर्यटन, संगीत
लक्ष्य – फिल्म निर्माण, म्यूजिक स्टूडियो, पुस्तक प्रकाशन
उपलब्धि
पूर्व सम्पादक मासिक पथ मंजरी भोपाल
पूर्व पत्रकार साप्ताहिक स्पूतनिक इन्दौर
प्रकाशित पुस्तकें
खिडकियाँ बन्द है (गज़ल सग्रह )
चलती का नाम गाड़ी (उपन्यास)
बेशरमाई तेरा आसरा ( व्यंग्य संग्रह)