दोनों वरिष्ठ कवि मंडी से टमाटर खरीद कर लौटे थे। एक जमाना था जब वे दो-चार कविताएं सुनाकर टमाटर-बैंगन वगैरह इकठ्ठा कर लिया करते थे। उस समय कविता को लेकर लोगों में जबरदस्त संवेदना थी। कविताएं तो उनकी आज भी वैसी ही हैं,टमाटर भी सस्ते हैं लेकिन लोगों ने बर्दाश्त करना सीख लिया है। ‘ज्वाला’ जी के पास छब्बीस रूपए थे,उन्होंने तेरह किलो टमाटर खरीदे और इस सफलता पर उनके अंदर तक एक शीतलता उतर आई थी।‘प्याला’ जी के पास थे तो 30 रुपए,लेकिन पच्चीस रुपए तात्कालिक भविष्य के लिए बचाकर उन्होंने मात्र ढाई किलो टमाटर खरीदे। खबरों से पता तो यह चला था कि, किसान मंडी के गेट पर टमाटर फेंककर चले जाते हैं,लेकिन वो कल की बात थी,आज टमाटर का भाव दो रुपए किलो रहा। प्याला जी की जेब अक्सर बदनाम रहती है,इसलिए वे स्वभाव के विपरीत स्थाई गंभीर हैं। बोले-‘कितनी भीड़ थी मंडी में! सारा शहर ही उमड़ पड़ा टमाटर खरीदने के लिए। इतने लोग नहीं आए होते तो, शायद आज भी किसान फेंककर चले जाते।’
ज्वाला जी को अब कोई टेंशन नहीं था। सालभर की चटनी के लिए वे पर्याप्त टमाटर खरीद चुके थे,लिहाजा अब उनका संवेदनशील हो जाना सुरक्षित था,–‘वो तो ठीक है,लेकिन किसान की सोचो। उस बेचारे की तो मजदूरी भी नहीं निकली।’ प्याला जी नासमझ नहीं हैं,उन्होंने लापरवाही से जवाब दिया-‘किसान की किसान जाने या फिर जाने सरकार..गेंहूँ, चावल,दाल वगैरह सब दो रुपए किलो मिले तो अबकी बार,रिपीट सरकार।’
‘जरा ये तो सोचो,भाव नहीं मिलेंगे तो किसान आत्महत्या करने लगेंगे..’ ज्वालाजी जन-ज्वाला होने के मूड में आने लगे।’उन्हें आत्महत्या नहीं करना चाहिए’ साहित्य की मंडी में हमारी कविता को कभी भाव नहीं मिले तो क्या हमने आत्महत्या की ?’ प्याला जी ने अपने अनुभव से ठोस तर्क दिया।
ज्वाला जी को लगा कि उन पर ताना कसा गया है,-‘दूसरों की तो पता नहीं, लेकिन मेरी कविता को तो भाव मिलता है।’
‘हां मिलता है,दो रुपए किलो…..कल मैंने अखबार की रद्दी तीस रुपए में तीन किलो बेची थी’… प्याला जी ने अपना गुस्सा निकाला।
‘दो रुपये ही सही,पर मैं मुफ्त में अपनी कविता फेंकता नहीं हूँ,कभी फेसबुक पर,कभी यहाँ,कभी वहाँ.. ज्वाला जी ने भी आक्रमण किया।
इस मुकाम पर बात बिगड़ सकती थी, लेकिन दोनों ने हमेशा की तरह गम खाया। कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक सन्नाटा-सा पसर गया।साहित्यकारों का ऐसा है कि,जब भी सन्नाटा पड़ता है तो उनमें समझौते की चेतना जागृत हो जाती है। पहल प्याला जी ने की-‘अगर किसान खेती करने के साथ कविता भी करने लगें तो उनमें बर्दाश्त करने की क्षमता का विकास होगा’,सुनकर ज्वाला जी ने लगभग घूरते हुए उन्हें हिदायत दी-‘कैसी बातें करते हो आप !! पहले ही बहुत कम्पटीशन है कविता में..जो भी रिटायर हो रहा है सीधे कविता ठोंक रहा है और कॉफी-डोसा खिलाकर सुना रहा है !! और पता है किसानों के पास बुवाई-कटाई के बाद कितना समय होता है ! वो कविता के खेत बोने लगेंगे और आदत के अनुसार यहाँ लाकर ढोलने लगेंगे तो हमारा क्या होगा!? प्याला जी को अपनी गलती का अहसास हुआ, बोले-‘मुझे क्या,चिंता की शुरुवात तो तुम्हीं ने की थी। तुम्हीं बताओ,क्या करें ?’ ज्वाला जी सोचकर बोले-‘किसान पर कविता लिखो,और किसी गोष्ठी में ढोल आओ…बस हो गया फर्ज पूरा।’
#जवाहर चौधरी
परिचय : जवाहर चौधरी व्यंग्य लेखन के लिए लम्बे समय से लोकप्रिय नाम हैl 1952 में जन्मे श्री चौधरी ने एमए और पीएचडी(समाजशास्त्र)तक शिक्षा हासिल की हैl मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इन्दौर के कौशल्यापुरी (चितावद रोड) में रहने वाले श्री चौधरी मुख्य रूप से व्यंग्य लेखन,कहानियां व कार्टूनकारी भी करते हैं। आपकी रचनाओं का सतत प्रकाशन प्रायः सभी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में होता रहता हैl साथ ही रेडियो तथा दूरदर्शन पर भी पाठ करते हैं। आपकी करीब 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं,जिसमें 8 व्यंग्य संग्रह,1कहानी संग्रह,1लघुकथा संग्रह,1नाटक और 2उपन्यास सम्मिलित हैं। आपने लेखन को इतना अपनाया है तो,इसके लिए आप सम्मानित भी हुए हैंl प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान में म.प्र.साहित्य परिषद् का पहला शरद जोशी पुरस्कार आपको कृति `सूखे का मंगलगान` के लिए 1993 में मिला थाl इसके अलावा कादम्बिनी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता में व्यंग्य रचना `उच्च शिक्षा का अंडरवर्ल्ड` को द्वितीय पुरस्कार 1992 में तो,माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान से भी 2011 में भोपाल में सराहे गए हैंl 1.11लाख की राशि से गोपालप्रसाद व्यास `व्यंग्यश्री सम्मान` भी 2014 में हिन्दी भवन(दिल्ली) में आपने पाया हैl आप `ब्लॉग` पर भी लगातार गुदगुदाते रहते हैंl