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कुछ दिन की जिंदगानी, एक दिन सब को जाना /
वर्षो की क्यों तू सोचे, पल का नहीं ठिकाना /
कुछ दिन की जिंदगानी। ….. ..२ /
मल मल के तूने अपने तन को जो है निखार /
इत्रों की खुशबूओं से महके शरीर सारा …..२ /
काया न साथ होगी , ये बात न भूलना //
वर्षो की क्यों तू सोचे, पल का नहीं ठिकाना /
कुछ दिन की जिंदगानी, एक दिन सब को जाना/ १/
मन है हरी का दर्पण , मन में इसे बसा ले /
करके तू कर्म अच्छे, कुछ पूण्य धन काम ले ..२
कर दान और धर्म तू , प्रभु को अगर है पाना /
वर्षो की क्यों तू सोचे, पल का नहीं ठिकाना /
कुछ दिन की जिंदगानी, एक दिन सब को जाना/२/
आएगी वो घडी जब कोई भी न साथ होगा /
कर्मो के तेरे सारे एक एक हिसाब होगा। …….२ /
ये सोच ले अभी तू फिर वक्त ये ना आना /
वर्षो की क्यों तू सोचे, पल का नहीं ठिकाना
कुछ दिन की जिंदगानी, एक दिन सब को जाना/३/
कोई नहीं है तेरा क्यों करता मेरा मेरा /
खुल जाए नींद जब भी समझो वही सबेरा ……2
हर भोर की किरण संग हर का भजन तो गाना /
वर्षो की क्यों तू सोचे, पल का नहीं ठिकाना
कुछ दिन की जिंदगानी, एक दिन सब को जाना/४/
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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