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आंधियां नफरतों की
कुछ ऐसी चलने लगीं
फिज़ा मेरे शहर की
वो देखो बदलने लगी
हर जगह कत्लेआम है
हर गली सन्नाटा हुआ
लोगो की खुशियों को ममता
नफरतें निगलने लगीं
आंधियां नफरतो ……..
हर आदमी सहमा यहाँ
एक दूसरे से डर रहा
दोस्ती के रिश्तों में भी
नफरते घुलने लगीं
आंधियां नफरतों ……..
आंधियां तो रूक जायेगीं
अवशेष छूट जायेगें
हो गये बर्बाद जो घर
कैसे आबाद हो पायेंगे
डाॅ0 ममता सिंह
एसोसिएेट प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
के०जी०के०(पी०जी०) कालेज
मुरादाबाद
स्थायी निवास- मुरादाबाद
कविताएँ ,गीत आदि लिखने का शौक
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