तब तक शायद बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था। बचपन के बैक बाल मन में भारी कौतूहल और जिज्ञासा का केंद्र होते थे। अपने क्षेत्र में बैंक का बोर्ड देख मैं सोच में पड़ जाता था कि आखिर यह है क्या बला। बैंकों की सारी प्रक्रिया मुझे अबूझ और रहस्यमय […]
व्यंग्य
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