जीता तन का संग्राम मगर, मन की सरहद पर हार गया। कुरुक्षेत्र आ गया आँगन तक, लड़ना अपनी मजबूरी थी घेरे था भीषण चक्रव्यूह अपनों से अपनी दूरी थी, लड़ती थी जाने कहाँ-कहाँ यह गुडाकेश-चेतना प्रबल, हम ही जाने क्यों भूल गए मोहन की गीता पूरी थी। सोते मूल्यों के […]
काव्यभाषा
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