जीवन की संकरी गलियों में, आज कहाँ यह अटक रहा है… मन मेरा क्यों भटक रहा हैl क्यों कर दूँ मैं दोष किसी को, क्यों खुद को निर्दोष बताऊँ तीन उँगलियाँ तनी सामने, उँगली एक किसे दिखलाऊँ किसका करूँ घमण्ड बता दो, जीर्ण हुआ तन दुर्बल काया धन-वैभव मद-मान […]
काव्यभाषा
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