मुझे तजुर्बा नहीं इतना कि, जिंदगी का हिसाब करुं बस जो पल मिल जाते हैं, उन्हें अपना किये जाती हूँ। तुम ढूंढ लो उन किनारों को, जो साहिल से जुड़े न हों तजुर्बेकार बनते हो, गुल से अलग करके देखो सुगन्ध कहाँ ठहरी, सलीकेदार बनते हो। एक अदब-सा है निगाहों […]
काव्यभाषा
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