रंगरसिया छलिया ओ कान्हा, अब तुम कहाँ गए। फैला चारों ओर है अंधेरा, अब तुम कहाँ गए। यमुना सी यमुना न रही, गोकुल सा गोकुल न रहा। बृन्दावन की हरियाली, सब कुछ अब है बदल रहा। कहाँ गए तुम कान्हा, नक्से सारे बिगड़ गए। न रिश्तों में प्यार है बचा, […]
काव्यभाषा
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