स्त्री लुटती रही नुचती रही चीख़ती रही चिल्लाती रही पर कोई न था सुनने वाला असहाय खड़ी नीढाल पड़ी रास्ते पर साथ थी उसके तो बस अविरल प्रवाहित होती उसकी अश्रु धारा कितना ज़ालिम है देखो ये ज़माना जिस माँ से जन्म लिया वो भी एक स्त्री है जिसने कलाई […]
काव्यभाषा
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