कुछ कहि कुछ अनकही बात रह गई है लालसा। संपूरित होते सपने अधूरे रह गई है लालसा।। छूँ लूं अपरिमित गगन और मुठ्ठी भर आकाश, किन्तु रह गई है लालसा। दीप बन हरने चली तमस घनघोर रात की स्वर्णिम सबेरा आएगा, रह गई है लालसा।। वट वृक्ष सा परिवार खण्डित […]
काव्यभाषा
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