हवाएं जो बदली कि नाविक किधर गए। जो बहके थे कल मदमस्त आज पिघल गए। मुख मोड़ा था कल हमारी बेकशी पर, जुबां थी उनकी कहते हैं फिसल गए। अकेले हैं गुमसुम साथी अब बदल गए, समय जो पलटा दरबारी टहल गए। नक्कार खाने में तूती कोई सुनता नही वक्त […]
काव्यभाषा
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