जब सोलह की रही होऊंगी, आईना बड़े चाव से देखती थी.. मगर आज जब बरसों बाद, अनायास आईने में खुद को देखा नजरें ठिठकी और विस्मित हुई, क्या मैं ही थी या कोई और, कितनी बदली हुई रंगत। मुस्कान के कुछ सूखे, अवशेष चिपकाए हुए.. आँखों के कोरों पर सपनों […]
काव्यभाषा
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