वक़्त फिर किस्मत पे भारी हो गया है, चाँद रातों का शिकारी हो गया है॥ बादशाहत ख्वाब की जागीर थी बस, इश्क़ में ये मन भिखारी हो गया है॥ अनमनी-सी नाचती है जिंदगी भी, झूठ उनका जो मदारी हो गया है॥ पाई-पाई बेच देंगे इस खुशी में, के सनम मेरा […]
काव्यभाषा
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