इस शरीर से काहे प्रेम करे है यह मिट्टी है मिट्टी में मिल जाना है ऊपरी सुंदरता पर क्यो मरे है अंदर अस्थि,मज्जा और पखाना है शरीर तो रथ है उसमें बसी आत्मा का जिसको एक दिन चले जाना है फिर ईर्ष्या, द्वेष, घमण्ड काहे को ये सब तो पाप […]
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दिव्य जनों के,देव लोक से, कैसे,नाम भुलाएँगे। कैसे बन्धुः इन्द्रधनुष के प्यारे रंग चुराएँगे। सिंधु,पिण्ड,नभ,हरि,मानव भी उऋण कभी हो पाएँगें? माँ के प्रतिरूपों का बोलो, कैसे कर्ज चुकाएँगे। माँ को अर्पित और समर्पित, अक्षर,शब्द सहेजे है। उठी लेखनी मेरे कर से, भाव *मातु* ने भेजे है। पश्चिम की आँधी में […]
