मैं हूँ सपनों का सौदागर, स्वप्न बेचता हूँ बेचता हूँ,आशाएँ उम्मीदें,अभिलाषाएँ छुपाकर सभी दाग, दिखाकर सब्ज़बाग एक भ्रमजाल बुनता हूँ। मैं हूँ सपनों का सौदागर, स्वप्न बेचता हूँ…………॥ दिखाकर भंगिमाएँ, कर कपोल कल्पनाएँ मिथ्या बुनियादों पर, हवाई किला बनाकर यादें सहेजता हूँ। मैं हूँ सपनों का सौदागर, स्वप्न बेचता हूँ…………॥ […]
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सरकारी सम्पदा से प्राप्त आय से बढ़े हुए पेट को तोंद कहते हैंl तोंद विकास का प्रतीक है। यह प्रतीक उतना ही पुराना है,जितनी पुरानी गरीबी। राज्य का विकास जानने के लिए तोंदवालों की गिनती होनी चाहिएlजितने तोंद वाले,उतना उस राज्य का विकासl विकास तोंद का प्रतीक और तोंद विकास का…विकास होगा तो भ्रष्टाचार होगा,भ्रष्टाचार होगा तो तोंद निकलेगी,यानी तोंदवाले को भ्रष्ट कहा जा सकता है,लेकिन जरूरी नहीं कि भ्रष्ट तोंदवाला हो। मोटा होना और तोंद वाला होना दोनों में फर्क हैl मोटा जन्मजात होता है,तोंदवाला ज्यादा खा-खाकर तोंदवाले की श्रेणी में आता है। बिना तोंदवाले भी भ्रष्ट हो सकते हैं। तोंद हो तो काशी और मथुरा के पंडो जैसी।भरपेट खाना खाने के बाद चार पूड़ी,एक गिलास रायता और एक कटोरा खीर तो चल जाएगी। तोंद पुलिसवालों की मशहूर होती है। पुलिस का पटटा तोंद में इस तरह समा जाता है-जैसे चावल में सफेद कंकड़,धनिए में लीद,फाइल में भ्रष्टाचार,सीमेंट में रेत और न जाने क्या-क्या? अकसर तोंद देखते ही मन के भाव बिगड़ जाते हैं। तोंदवाले से पत्नी परेशान होती है और होते हैं- बस वाले,रिक्शे वाले और रिश्तेवाले। तोंद होना सिद्ध करता है कि,आप आलस के मारे हैं या फिर रिश्वत के…,दोनों ही स्थितियां तोंद बढ़ाने में मददगार हैं। तोंद साम्प्रदायिक सदभाव काप्रतीक है।तोंद का विकास सम्प्रदायवाद से होता है। जोसभी सम्प्रदाय का समान रूप से शोषण करता है,उस शोषण से तोंद का विकास होता है। तोंद गरीब आदमी कीनहीं होतीहै,किसान कीभी नहीं होती,सेना के जवानों की भी नहीं होती,तोंद नेताओं कीहोती है,सेठों की होती है,महिलाओं का पेट होताहै,तोंद नहीं होतीहैlपहाड़ों पर तोंद वाले नहीं दिखाई देते,गांवों में भी तोंद नहीं दिखाई देती,शहरों में नगर पालिका कार्यालय,रेलवे काउंटर,किराने की दुकान,कपड़े की दुकान पर तोंद देखने को आसानी से मिल जाती है। तोंद राष्ट्र विकास की मुख्यधारा है। राष्ट्रीय पशु,राष्ट्रीय पक्षी,राष्ट्रीय खेल की तरह हीतोंद को भी राष्ट्रीय विकास का प्रतीक बना देना चाहिए। वैसे अब तोंद पदोन्नतिप्रतीक बनाए जाने पर जोर दिया जा रहा है। तोंद होगी तो पदोन्नति नहीं होगी,तोंद नहीं होगी तो पदोन्नति होगी। तोंद,निकम्मेपन के प्रतीक के रूप में उभरकर सामने आ रही है। कुछ लोगों की तोंद देखकर लगता है,जैसे उन्हें खाने की जरूरत नहीं है तो,किसान का पेट देखकर लगता है,उसका खाना सब तोंदवाले खागएlबचपन में तोंद निकलना कुपोषण का लक्षण और अधेड़ अवस्था में तोंद का निकलना अनियमितता-असंतुलन-पेटू होने का प्रतीक है।तोंद पर विचार-विमर्श होना चाहिए। आदमी की कितनी तोंद होनी चाहिए,तोंद का मानदण्ड होना चाहिए। `जीएसटी` की तरह हीमानकीकरण होना चाहिए।४५इंची तोंद पर १२ प्रतिशत जीएसटी,५९ इंची पर १८ प्रतिशत और जिनके पिचके पेट हैं उन्हें `करमुक्त` रखना चाहिए।एक सर्वे होना चाहिए,जिसमें तोंद वालोंको कितने प्रतिशत महिलाएं पसंद करती है,कितने प्रतिशत लोग तोंद को अच्छा मानते हैं। तोंद बढ़ाने के प्रयासों पर कार्यशाला होना चाहिए-देश के लिए तोंदवालों का महत्व। यह भी तय होना चाहिए कि,मंत्री की कितनी तोंद होनी चाहिए,संतरी की कितनी,राज्यमंत्री की कितनी और प्रधानमंत्री को कितनी तोंदसे काम चलाना चाहिए। अधिकारी और बाबू को `तोंदकर` के दायरे में लाना चाहिए। सबसे ज्यादा तोंद कर सेठों से वसूलना चाहिए। […]